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________________ ध्यान २९७ ही चिढ़कर काट खाएगा। यह क्या सूचित करता है कि इससे तो कष्ट होता है, ऐसी कष्ट-साध्य समाधि किस काम की? समाधि तो सहज होनी चाहिए। उठते, बैठते, खाते-पीते समाधि रहे, वह सहज समाधि है। अभी तो मैं आपके साथ बात कर रहा हूँ, और नाक तो दबाई नहीं है, तो फिर मुझे समाधि होगी न? मैं निरंतर समाधि में ही रहता हूँ और कोई गालियाँ दें तो भी हमारी समाधि नहीं जाती। ये नाक दबाकर जो समाधि करने जाते हैं, उसे तो हठयोग कहते हैं। हठयोग से कहीं समाधि हो पाती होगी? गुरु का यह फोटो यदि किसीने उठा लिया हो तो भी उसे भीतर क्लेश हो जाता है। समाधि तो निष्क्लेश होनी चाहिए और वह भी फिर निरंतर, उतरे नहीं उसका नाम समाधि और उतर जाए उसका नाम उपाधि! छाया में बैठने के बाद धूप में आए तब बेचैनी होती है, यों! आधि, व्याधि और उपाधि में भी समाधि रहे, उसका नाम समाधि! समाधि तो परमानेन्ट ही होनी चाहिए। सच्ची समाधि प्रश्नकर्ता : समाधि परमानेन्ट हो सकती है, ऐसा तो मैं जानता ही नहीं था! दादाश्री : पूरे जगत् को बंद आँखों से समाधि रहती है, वह भी सब को रहे या न भी रहे, जबकि यहाँ अपने को खुली आँखों से समाधि रहती है! खाते, पीते, गाते, देखते हुए सहज समाधि रहती है! आँखों पर पट्टी बाँधकर तो बैल को भी समाधि रहती है, वह तो कृत्रिम है और अपने को तो खुली आँखों से भगवान दिखते हैं। रास्ते पर चलते-फिरते भगवान दिखते हैं। बंद आँखों से तो सभी समाधि करते हैं, लेकिन यथार्थ समाधि तो खुली आँखों से रहनी चाहिए। आँखें बंद करने के लिए नहीं हैं। आँखें तो सब देखने के लिए हैं, भगवान जिनमें हैं उनमें यदि देखना आ जाए तो! असल में तो जैसा है वैसा देख, जैसा है वैसा सुन, जैसा है वैसा चल, इसके बावजूद भी समाधि रहे, ऐसी है दादा की समाधि। और बंद आँखों की समाधि के लिए तो जगह ढूँढनी पड़ती है। यहाँ एकांत नहीं है, तो दुनिया में कहाँ जाएगा? यहाँ तो बेहद बस्ती है। भीड़ में एकांत ढूँढना आ
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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