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________________ ज्ञानयोग : अज्ञानयोग भी नहीं होता। वह किसके जैसा है? नींद में 'मैं प्रधानमंत्री हूँ' ऐसा बोले तो कुछ फल आता है? मन के योग में ध्यान, धर्म करता है, लेकिन वे सभी रिलीफ रोड हैं। अंतिम आत्मयोग, उसके हुए बिना कुछ भी परिणाम नहीं आ सकता। आत्मयोग प्राप्त नहीं हुआ है, इसीलिए तो ये सब पज़ल में डिज़ोल्व हो गए हैं न ! २८७ हम सब यहाँ पर ‘शुद्धात्मा' में रहते हैं, तो वह आत्मयोग है। स्वरूप का ज्ञान, वह आत्मयोग है यानी कि वह खुद का स्थान है, बाकी के सभी देहयोग हैं। उपवास, तप, त्याग करते हैं, वे सभी देहयोग हैं। वे तीनों ही योग (मन-वचन-काया) फिज़िकल है। इस फिज़िकल योग को पूरा जगत् अंतिम योग मानता है। ये सभी योग मात्र फिज़िकल प्राप्त करने के लिए ही है। फिर भी इस फिज़िकल योग को अच्छा कहा गया है। ऐसा कुछ भी नहीं करेगा तो शराब पीकर सट्टा खेलेगा, उसके बजाय तो यह सब करता है वह अच्छा है और इसका फायदा क्या है? कि बाहर का कचरा भीतर नहीं घुसता और रिलीफ मिलता है और मनोबल मज़बूत होता है। बाकी, अंतिम आत्मयोग में आए बिना मोक्ष नहीं हो सकता। योग से आयुष्य का एक्सटेन्शन ? प्रश्नकर्ता : योग से मनुष्य हज़ारों-लाखों सालों तक जीवित रह सकता है क्या? दादाश्री : लाखों तो नहीं, लेकिन हज़ार - दो हज़ार सालों के लिए ज़रूर जी सकता है। वह योग कैसा होता है ? यों तो आत्मा पूरे शरीर में व्याप्त है, लेकिन योग से आत्मतत्व ऊपर खिंचता है, उसे जब ठेठ ऊपर ब्रह्मरंध्र में खींच लेता है, तब हार्ट, नाड़ी सभी बंद हो जाते हैं I आत्मा कमर तक रहें, तभी तक हृदय, नाड़ी वगैरह सब चलता है लेकिन उससे ऊपर चला गया तो सारी मशीनरी बंद हो जाती है । किसीने यह योग पंद्रह साल, तीन महीने, तीन दिन, तीन घंटे और तीन मिनट की उम्र में शुरू किया हो और वह एक हज़ार साल के बाद पूरा हो तो उसका आयुष्य वापस से पंद्रह साल, तीन महीने, तीन दिन, तीन घंटे
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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