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________________ तप २५७ कहता है, 'चार दिन।' तो आप तप करके तपे हुए रहोगे या ठंडे? लेकिन वह तपा हुआ ही रहता है। ऐसे तपे हुए व्यक्ति को बेटे ने कुछ कह दिया तो ऐसी आग उगलता है कि बेटा सोचता है कि, 'इससे तो बाप नहीं होता तो अच्छा था!' भगवान ने कहा था कि, 'पेट में दु:ख रहा हो, अजीर्ण हुआ हो तो एकाध पहर का भोजन करना।' अधिक खाएगा वह भी पोइज़न है और नहीं खाएगा वह भी पोइजन है। इसलिए भगवान ने ऊणोदरी (जितनी भूख हो उससे आधा भोजन खाना) तप करने को कहा था यानी कैसा कि रोज़ चार रोटियाँ खाता हो तो तीन खाकर शुरूआत करना और चावल आधे खाना, तो फिर तुझे तप करने की ज़रूरत नहीं रहेगी। पेट को जीने लायक भोजन देना। अफ़रा चढ़े, वह गुनाह है। खीर खाई हो और सत्संग में कहें कि 'इतना पाठ करना।' वह सोते-सोते पाठ करने जाता है तो नशा चढ़ता है। उतना खाना ही नहीं चाहिए कि आँख लग जाए। जो बहुत दिनों तक भूखे रहते हैं, उसे तो भगवान ने 'ढोरलांघण' (मालिक की गफलत की वजह से मवेशी का भूखा रहना) कहा है, लेकिन वह कष्ट का सेवन है, वह फल दिए बगैर जाएगा नहीं, देवगति मिलेगी। विलास करो तो भी फल मिलेगा। भगवान ने नॉर्मल रहने को कहा है, 'सहज मार्ग से चला जा' ऐसा कहा है। लेकिन भगवान की बात कोई समझा ही नहीं और लोग नासमझी से तप करने जाते हैं। प्राप्त तप ही करने जैसा है। यह तप किसी और का सीखकर करने जैसा नहीं है। तेरा मन ही रात-दिन तपा हुआ है न! तेरा मन, वाणी और वर्तन जो तपे हुए हैं, उन्हें तू शांतभाव से सहन कर, वही खरा तप है! जब मन, वाणी और वर्तन तपे हुए होते हैं, तब उस समय उनमें तन्मयाकार रहता है, और जब कुछ भी तपा हुआ नहीं होता, तब तप करने बैठ जाता है। लेकिन फिर उस समय किस काम का? तप तो कब करने को कहा है भगवान ने? जब सभी ज़हर देनेवाले आएँ, उस समय भीतर अंतर तपे तो भी सहन कर लेना, लाल-लाल हृदय हो जाए तो भी शांत भाव से सहन कर लेना। तप
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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