SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयोग विज्ञान २५३ एक जन्म में ही बेहद मार खाता है ! यह तो, भगवान खुद का भान भूल गए, इसलिए संसार खड़ा हो गया! 'ये संयोग अच्छे हैं और ये खराब हैं' इसीसे संसार खड़ा है, लेकिन यदि ये सारे संयोग दुःखदायी हैं' ऐसा कहा तो फिर हो गया मोक्षमार्गी! यही वीतराग भगवान का साइन्स है, भगवान महावीर कितने बड़े साइन्टिस्ट थे! वीतराग तो जानते थे कि जगत् मात्र संयोगों से खड़ा हो गया है। लोगों ने संयोगों को अनुकूल और प्रतिकूल माना और उन पर राग-द्वेष किए, जबकि भगवान ने तो दोनों को ही प्रतिकूल माना और वे मुक्त हो गए। 'एगो मे शाषओ अप्पा, नाण दंश्शण संजूओ।' मैं एक शाश्वत आत्मा हूँ, ज्ञान-दर्शनवाला ऐसा शाश्वत शुद्धात्मा हूँ, मैं सनातन हूँ, सिर्फ सत् ही हूँ। 'शेषा मे बाहिराभावा, सव्वे संयोग लख्खणा।' ये जो शेष बचे हैं वे सारे बाहरी भाव हैं। उन भावों के लक्षण क्या हैं? वे संयोग लक्षणवाले हैं। 'बाहिराभावा' कौन से? संयोग लक्षण, मतलब टेढा विचार वह संयोग, शादी करने के विचार आएँ वह संयोग, विधवा हो जाने का विचार आए, वह संयोग। ये सभी 'बाहिराभावा' कहलाते हैं और ये सभी संयोग लक्षणवाले हैं। इन सभी के लक्षण संयोग स्वरूप हैं। जिनका वियोग होनेवाला वे सभी संयोग हैं, वे भूल से बुला लिए थे इसलिए आए हैं। 'संजोगमूला जीवेण पत्ता दुःखम् परम्परा, तम्हा संजोग संबंधम् सव्वम् तीवीहेण वोसरियामी।' सभी संयोग जीव के दुःखों की परंपरा के मूल में हैं। उन सभी संयोगों को दादा भगवान को- वीतराग को अर्पण करता हूँ, यानी कि समर्पण करता हूँ, और इसलिए हम उनके मालिक नहीं रहे। ये संयोग कितने सारे हैं? अनंता हैं। इन अनंत संयोगों को, एक के बाद एक कब छोड़ पाएँगे? इसके बजाय तो उन सभी संयोगों को दादा को अर्पण कर दिया, तो हम छूट गए!
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy