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________________ जगत् - पागलों का हॉस्पिटल २३९ धर्म के अंदर ही व्यापार! इसलिए ऐसा जो पुराना डेवेलपमेन्ट था, वह निकाल देने जैसा था। वह बिल्कुल खत्म हो चुका स्ट्रक्चर है, उसे गिर जाने दो, नया खड़ा हो रहा है वर्ना मोक्ष की बात तो सुनने को ही नहीं मिलती! जैसे-जैसे यह कल्चर्ड होता जाएगा, वैसे-वैसे वे पुस्तकें टाँड़ पर चढा देंगे. रद्दी में चली जाएँगी। क्योंकि जब तक डेवेलप नहीं होते, तब तक उनकी क़ीमत है। गीता को समझनेवाले और वेदांत को समझनेवाले निकलेंगे अब! अब डेवेलप हो रहे हैं। उसमें निमित्त बने हैं अंग्रेज़। इन सभी बातों में अंग्रेज़ निमित्त बने हैं। प्रश्नकर्ता : उन्होंने ज्ञान का अनावरण किया? दादाश्री : नहीं, ज्ञान का नहीं। लेकिन लोग जो एब्नॉर्मल हो गए थे उसमें बैकिंग (वापस ले आए) करवाया, मतलब नॉर्मेलिटी की तरफ लाए। अपने लोगों ने क्या कहा कि, 'ये लोग अपने धर्म और अपने आचार नष्ट करने आए हैं' यानी उन्होंने इतना नष्ट किया, तभी तो यह नॉर्मेलिटी पर आ रहे हैं। अपने लोग क्या शोर मचा रहे थे? कि ये लोग धर्म और आचार सब तोड़ डालेंगे और अपना सब खत्म कर डालेंगे! ना, उन्होंने उतना कम कर दिया। ८५ डिग्री तक की मात्रा एब्जॉर्मल हो गई थी और हमें नॉर्मेलिटी के लिए ५० डिग्री की ज़रूरत थी, तब उन लोगों ने आकर ३०-३५ डिग्री निकाल दी, जड़ बना दिया, जड़ अर्थात् दारू पीना सिखा दिया, माँसाहार, कपड़े-लत्ते सभी कुछ मोहनीय बना दिया, इसलिए 'पहलेवाले' दुर्गुण चले गए! जो तिरस्कार के दुर्गुण थे न, वे चले गए, फ्रेक्चर हो गए। यह सबसे अच्छा काम किया उन लोगों ने। अंग्रेज़ों का एक उपकार अंग्रेज आए और उनकी भाषा लाए, वह अपने परमाणुओं के साथ आती है। हर एक भाषा हमेशा खुद के परमाणु लेकर आती है। इसलिए उनके जो गुण थे न, साहजिक गुण थे, टाइम-वाइम सब एक्जेक्ट होना चाहिए, वे साहजिक गुण नये सिरे से शुरू हो गए। ये तो सब स्वार्थी हो
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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