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________________ जगत् - पागलों का हॉस्पिटल २३१ मेन्टल हॉस्पिटल में मन भी पागल हो गया है, वाणी भी पागल हो गई है और देह की गति-विधियाँ भी पागल हो गई हैं। अब ये तीनों भाग पागल हो गए हैं, अब रिपेयर भी किस तरह करें? किस तरह रिपेयर होंगे? एकाध भाग पागल हो गया हो तो उसे रिपेयर किया जा सकता है। अब ये तीनों ही भाग इम्पोर्ट कहाँ से करें? किसी भी जगह पर होते नहीं हैं न? इसलिए पागल के हॉस्पिटल में टकरा-टकराकर और कुटकर सारी दवातें टूट जाएँगी! सभी लटू टूट जाएँगे, टकरा-टकराकर। बाकी, जगत् तो पागलों का हॉस्पिटल बन गया है। हिन्दुस्तान में तो यदि सौ घर होते थे, तब बहुत हुआ तो उनमें से पचास घर दुर्जनों के होते थे और पचास सज्जनों के होते थे, तो उन पचास में से पाँच ही घर क्लेशवाले होते थे और पैंतालीस घर तो क्लेश रहित होते थे, वैसा यह हिन्दुस्तान! यदि समझदारों का हिन्दुस्तान होता तो पैंतालीस घरों में क्लेश नहीं होता। सौ घरों में पचास तो दुर्जनों के घर होंगे, वे तो समझो क्लेश-कलह में ही जीते हैं, लेकिन बाकी के पचास में से पाँच ही घर क्लेशवाले, बाकी के पैंतालीस घर क्लेश रहित होते थे, सौ में से पैंतालीस प्रतिशत, लेकिन यह तो हज़ार क्या लाखों में भी एक घर क्लेश रहित नहीं है। इसलिए पागलों का हॉस्पिटल है। क्योंकि धर्मस्थानों में तो संपूर्ण शांति ही बरतनी चाहिए, जबकि वहाँ तो संपूर्ण अशांति है! एक साहब रोज़ मोटर में ऑफिस जाते थे, तो एक दिन मोटर बिगड़ गई तो साहब चलते-चलते जा रहे थे और वापस खुद ही बोल रहे थे और खुद ही सुन रहे थे, मुझे आश्चर्य हुआ कि, 'यह किस तरह का रेडियो बज रहा है?' मैं उनके पास गया, मैंने उनसे पूछा, 'क्यों आज बिना मोटर के? आप क्या बोल रहे थे?' तब उन्होंने कहा, 'कुछ नहीं, कुछ नहीं।' वे खुद का छिपा रहे थे। अरे! मन में विचार करे उसमें हर्ज नहीं, लेकिन ये विचार मुँह से
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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