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________________ ३१ साल बाद फॉरेन से लोग यहाँ पढ़ने आएँगे कि जीवन कैसे जीएँ, खाएँ कितना, सोएँ कितना और रहें किस तरह! - जगत् में 'शुद्धात्मा' और संयोग दो ही वस्तुएँ हैं। - दादाश्री 'शुद्धात्मा' शाश्वत है और संयोग निरंतर बदलते ही रहते हैं। 'स्थूल संयोग, सूक्ष्म संयोग और वाणी के संयोग पर हैं और पराधीन - दादाश्री पंचेन्द्रियों द्वारा अनुभव किए जा सकें, वे सभी संयोग स्थूल संयोग हैं। मन के, बुद्धि के, चित्त के और अहंकार आदि के संयोग सूक्ष्म संयोग हैं और वाणी के संयोग जो कि स्थूल-सूक्ष्म हैं, वे सब पर हैं और फिर पराधीन हैं। वाणी रिकॉर्ड है, फिज़िकल है। आत्मा और वाणी का कोई लेना-देना नही हैं। आत्मा अवाच्य है। हाँ, वाणी कैसी निकलती है, कहाँ भूल होती है आदि का आत्मा ज्ञाता-दृष्टा है। संयोग विनाशी हैं। यदि संयोगों में मुकाम करे तो खुद विनाशी है और अविनाशी, ऐसे आत्मा में मुकाम करे तो खुद अविनाशी ही है। महावीर भगवान ने एक आत्मा के सिवा बाकी जो भी कुछ है, वह सब संयोग विज्ञान है, ऐसा कहा है। इन सर्व संयोगों के संग से मुक्त, ऐसा खुद असंग शुद्धात्मा है। - तप दो प्रकार के हैं : एक बाह्य तप और दूसरा आंतर तप। बाह्य तप मतलब दूसरों को पता चल जाए, वह और आंतर तप का किसी को पता नहीं चलता, खुद खुद के ही अंदर तप करता रहता है वह। बाह्य तप का फल संसार है और आंतर (भीतरी, अंदरुनी) तप का फल है, वह मोक्ष है! बाह्य तप से तो हरकोई विदित है ही। लेकिन आंतर तप एक 'ज्ञानीपुरुष' से ही प्राप्त हो सके ऐसा है। 'आत्मा और अनात्मा जुड़कर एक नहीं होने दे, वह खरा तप।' - दादाश्री होम डिपार्टमेन्ट, यानी कि खुद में; स्व में, आत्मा में ही रहना और फॉरेन डिपार्टमेन्ट मतलब आत्मा के अलावा अन्य में रहना। और पुद्गल 2A
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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