SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०९ आज तो इन लोगों को सहन करने को कुछ भी नहीं है, फिर भी रोज़ रोते रहते हैं! सारी जिंदगी का लेखा-जोखा निकाले तो भी महान पुरुषों के एक दिन के दुःख के बराबर भी नहीं होगा, फिर भी रोते रहते हैं! हमें निरंतर ज्ञान में दिखता है कि जगत् के लोग बैर से ही बंधे हुए हैं, और इसीलिए तो चेहरा अरंडी का तेल पीया हो ऐसा दिखता है ! बैर से क्लेश होता है। पार्श्वनाथ भगवान को यदि थोड़ा भी पहचान लो तो वीतरागता के अंकुर फूटेंगे, लेकिन पहचानेंगे किस तरह? साँपवाले पार्श्वनाथ और सिंहवाले महावीर स्वामी! लोग तो आम को इस प्रकार पहचानते हैं कि यह रत्नागिरि है या वलसाड़ी। लेकिन उन्हें भगवान की पहचान नहीं हो पाती! अब इन्हें कैसे पहुँच पाएँ? सुखी होने का मार्ग यही है कि किसी को भी हम से दु:ख न हो! हमें रात को बाहर से आना हो तो हमारे बूट की आवाज़ से कुत्ता जाग नहीं जाए, इसलिए हम सँभलकर चलते थे। कुत्ते की भी नींद तो होती है न! उस बेचारे को बिस्तर-विस्तर तो, राम तेरी माया! तो उसे शांति से सोने भी नहीं देना चाहिए? ___लाख रुपये उधार दिए होंगे तो कोई आपके पास नहीं आएगा, लेकिन कोई माँग रहा होगा, उधार होगा, तो वह आपके पास माँगता हुआ आएगा। और उधार किसका है? रिवेन्ज का उधार है। यह तो राग हुआ और उसमें से ही बैर का उधार होता है। और उसके बाद फिर से राग होता है। और उसमें फिर से बैर बंधता है। यही संसार की परंपरा है। वीतराग जानते थे कि, संसार की इतनी कढ़ाइयों में तला जाएगा, उसके बाद मोक्ष होगा। वीतराग मोक्ष में ले जाएँगे, यह भान हो जाए, उसके बाद फिर हल आ जाता है। वीतराग के पास तो सिर्फ मोक्ष मिलता है, और कुछ नहीं मिलता। धत् तेरे की! यह जलेबी जड़ और तू चेतन, तो इतनी सी जलेबी इस दो सौ किलो को खींचती कैसे हैं? यह भी आश्चर्य है न?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy