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________________ २०२ आप्तवाणी-२ किसी को सट्टे पर राग होता है और किसी को सट्टे पर द्वेष होता है तो रागवाला कहता है कि, 'सट्टा अच्छा है' और द्वेषवाला कहता है कि, 'सट्टा बुरा है' यह धंधा अच्छा नहीं है। ये दोनों के विचार हैं। तब यदि वह ऑपॅज़िशन में से हट जाए तो ऑपॅज़िशन नहीं रहेगा। स्त्री को छोड़ा, करोड़ों रुपये छोड़े, सब छोड़कर जंगल में गए, फिर भी राग-द्वेष होते हैं, हो ही गया न सब काम! बाधक कौन है? अज्ञान। राग-द्वेष तो बाधक नहीं हैं, लेकिन अज्ञान बाधक है। वेदांतियों ने मल, विक्षेप और अज्ञान निकालने को कहा है और जैनों ने राग, द्वेष और अज्ञान निकालने को कहा है। अज्ञान दोनों में कॉमन है, और अज्ञान किसका? तब कहे, 'स्वरूप का अज्ञान।' वह गया तो सबकुछ चला जाता है। अज्ञान निकालने के लिए आत्मा के ज्ञानी की ज़रूरत है। जहाँ राग-द्वेष हैं, वहाँ संसार है। जहाँ राग-द्वेष नहीं हैं, फिर भले ही वह राजमहल में रह रहा हो या होटल में रह रहा हो, फिर भी वह अपरिग्रही है। और कोई गुफा में रह रहा हो, और एक भी परिग्रह नहीं दिखे, फिर भी उसे यदि राग-द्वेष हो तो उसे भगवान ने परिग्रही कहा है। जिसके राग-द्वेष जाएँ वह वीतराग बन जाता है। 'मैं चंदू हूँ' वह परिग्रह है। राग-द्वेष, वही परिग्रह है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह अपरिग्रह है। आपको ज्ञान देने के बाद आपका झगड़ा हो रहा हो फिर भी रागद्वेष नहीं होते, यह आश्चर्य है न? अज्ञानी को झगड़ा नहीं हुआ हो फिर भी राग-द्वेष रहते हैं। झगड़े से राग-द्वेष नहीं होते, लेकिन तंत रहे उसका नाम राग-द्वेष। प्रश्नकर्ता : तंत मतलब क्या, दादा? दादाश्री : ताँता अर्थात् तंत (सिलसिला)। पत्नी के साथ आपका झगड़ा हुआ हो और वह सुबह उठकर चाय का कप रखते समय ज़रा प्याला पटककर रखे तो हम नहीं समझ जाएँगे कि अभी तक रात के झगड़े का तंत चल रहा है? वह तंत कहलाता है। जिसका तंत गया वह वीतरागी हो गया! जिसका तंत टूट गया उसके मोक्ष की गारन्टी हम लेते हैं!
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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