SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यवहारिक सुख-दुःख की समझ १९९ बोलती हैं! सभी बोल पड़ें ऐसा है, इस जगत् में! भगवान को रोज़ नहलाते हैं, धुलाते हैं गुनगुने पानी से नहलाते हैं, तो क्या हमेशा अबोला ही रहनेवाला है? कोई व्यक्ति शादी करने जाए और पत्नी लेकर आए और वह अबोला ले ले, तो फिर क्या फायदा? बोले ही नहीं उसका क्या करे? यानी भगवान भी बोलेंगे, यदि अपना भाव होगा तो बोलेंगे। आप यह जो पूजा करते हो, वह आपके घर के अच्छे संस्कार हैं। प्रश्नकर्ता : मैं दूसरे शहर जाता हूँ तो भगवान को साथ ही लेकर जाता हूँ। दादाश्री : भगवान के बिना तो कोई क्रिया करनी ही नहीं चाहिए। वास्तव में तो ठाकुर जी यह तामसी खुराक लेने को मना करते हैं, लेकिन अब क्या करें? बहत हआ तो अबोला (किसी से बोलचाल बंद करना) ले लेंगे, तो बोलना बंद कर देंगे, वर्ना वैष्णवजन को तो बाहर का छूना भी नहीं चाहिए, पानी भी नहीं पीना चाहिए। कितना अच्छा पक्का वैष्णव कहलाता है ! मूर्ति को नहलाता है, धुलाता है, वह पक्का वैष्णव कहलाता है। लेकिन क्या करे? अभी संयोगों के हिसाब से किसी को टोकने जैसा नहीं है। संयोगों के अनुसार होता है न? इसलिए मूर्ति नहीं बोलती, वर्ना मूर्ति बोलती है। यदि हर प्रकार से उनके नियमों का पालन करे न, तो क्यों नहीं बोलेंगे? पीतल की मूर्ति है या सोने की? प्रश्नकर्ता : चाँदी की। दादाश्री : आज तो सोने की मूर्ति हो तो बच्चे बाहर जाकर बेच आएँ, आपको मेरी बात पसंद आई न? प्रश्नकर्ता : हाँ, दादा, बहुत पसंद आई। दादाश्री : अब यदि बाहर खाना खाओगे न, तब भी ठाकुर जी को खिलाकर खाना, उससे आपकी ज़म्मेदारी खत्म हो जाएगी।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy