SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यवहारिक सुख-दुःख की समझ १८१ सुख आएगा। लेकिन ऐसा नहीं जानने से ही ये सारे दुःख हैं। नासमझी के दु:ख हैं। कुछ पता तो लगाना चाहिए न कि सुख किसमें है? यह तो गधे की तरह भाग-दौड़, भाग-दौड़ करता है। और फिर वापस गिर जाता है, टकरा जाता है। ऐसा कहीं होता होगा? इन मनुष्यों में जीवन जीने की कला नष्ट हो गई है। यह पीतल, ताँबा, लोहा, ये सभी धातुएँ उनके गुणधर्म में रही हुई हैं। लेकिन यह पंचधातु का पुतला बहुत विषम है! यह कुछ तृतियम् ही ढूँढ निकालता है! होता है खुद सेठ, लेकिन लोग कहेंगे कि, 'भाई, बात ही मत करना न उनकी तो!' कारण क्या है? कि सेठ किसी काम के हैं ही नहीं। यानी कोई मार्ग तो निकालना पड़ेगा न कि खुद किस तरह सुखी बने? संसार में सुख नहीं है, ऐसा कब होता है? जब दु:ख आएँ तब हिसाब निकलता है। ये सारे खाते तो अनंत दु:खवाले ही हैं। लेकिन जब सुख आए तब मस्त होकर घूमते हैं और दुःख आए तब समझ में आता है कि यह संसार तो खारा ज़हर है। लेकिन खुद का सारा सोना यदि समुद्र में फेंक दे, फिर बाद में मिलेगा क्या? फिर तो चीखकर रोना पड़ता है। यदि एक बार संसार बिगाड दिया तो फिर कैसे सुधरेगा? उसे तो सिर्फ वीतराग वाणी ही सुधार सकती है, और वही मोक्ष दे सकती है ऐसा है। इस देह का बंधन, वाणी का बंधन, मन का बंधन, बुद्धि का बंधन, अहंकार का बंधन, वह कैसे पुसाए? ये सभी बंधन खुद से अलग ही हैं, लेकिन ये तो आपने जमा किए हैं। 'मैं ही मन हूँ, अहंकार वह मैं ही हूँ' उसके बाद मूढ़ात्म दशा हो जाती है। वर्ना यदि इनसे जुदा हो जाए तो खुद परमात्मा ही है। इन सभी विनाशी चीज़ों में सुख माना इसलिए मूढात्मा बन गया है! दुःख तो नाम मात्र को भी नहीं है, लेकिन मान बैठता है उसके दुःख हैं। ये ऊपर जाने के बाद, किसी के खत-वत आए हैं क्या आपको? प्रश्नकर्ता : ना, वे तो कहाँ से आएँ? दादाश्री : ऐसा है यह संसार। खाते में यदि पाँच सौ रुपये जमा हैं तो इस जन्म में वह हिसाब पूरा करने के लिए आ मिलते हैं। वे पुराने
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy