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________________ १७८ आप्तवाणी-२ कह नहीं सकते और सहा भी नहीं जाता! बस घुलते रहना है! इस बैल को तो पूरी जिंदगी मेहनत करनी और जब बूढ़ा हो जाए तब कट के मर जाना पड़ता है। उन्हें रिटायर होना होता है क्या? है ज़रा सा भी उन्हें टेन्शन में से निकलने का? यह तो, अपने को जो दुःख हैं, उसके मुकाबले जानवरों को तो बेहिसाब दुःख हैं। इन जानवरों के मुकाबले तो हमें कम दु:ख हैं न? ऐसे सोचना है। यह तो मुँह पर एक फँसी हुई हो तो दुःख हो जाता है! दुःखों को न रोए वह खानदानी जो रोकर खुद के दुःख दूसरों को बताए, क्या वह खानदानी कहलाएगा? लेकिन लोग तो सभी को दुःख बताते फिरते हैं। दु:ख बताने की शक्ति हो फिर भी सहन करना और किसी से नहीं कहना, वह खानदानियत कहलाती है! बड़ा आदमी खुद के दुःखों को पी जाता है। क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि इसमें कहने जैसा क्या है? क्या सामनेवाला अपना दु:ख ले सकता है? क्या ये जानवर आते हैं खुद के दुःख बताने? अगर कुतिया का पैर मोटर के नीचे आ जाए तो वह किसे कहने जाती है? वह बेचारी पैर घसीट-घसीटकर चलती है, उसे दवाई-ववाई कुछ भी नहीं! इन जानवरों के हैं कोई नन्दोई-वन्दोई? यह तो जब से मनुष्य में आए, तभी से हमारे नन्दोई, हमारे पति। कौन से जन्म में पति नहीं मिला था? कुत्ते में भी और गधे में भी - सभी जगह पति मिला था, फिर भी ऐसा ही पसंद है लोगों को, वर्ना खुद परमात्मा ही है! यह जन्म मुक्ति के लिए मिलता है, लेकिन वह काम तो भूल गया। जिस काम के लिए आया है, वही काम भूल जाए तो उससे बड़ा मूरख कौन? इस संसार में ये मेरे ससुर, ये मेरी सास और यह मेरा पति और यह मेरी पत्नी, ऐसे मेरा-मेरा करते रहे हैं, लेकिन जब दांत में दर्द उठता है, तब कोई नहीं आता। बुढ़िया बहू से कहे कि, 'दाढ़ दुःख रही है तो अरे, कुछ रास्ता बता न!' तब मन में बहू सोचती है कि यह बुढिया क्या किच-किच करती होगी! लेकिन वह तो उसे दुःखे तब पता चले। लेकिन उस घड़ी भूल
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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