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________________ जहाँ अनंत दोषों का भाजन है, पग-पग पर भूलें ही हैं । अरे, यहाँ इस जगत् में हम विद्यमान हैं, क्या वही सबसे बड़ी भूल नहीं है? मूलतः जहाँ खुद ही भूल से भरा हुआ है, वहाँ औरों को कहाँ दोष देना? औरों को दोष देना, उसके जैसा अवगाढ़ मिथ्यात्व इस जगत् में और कुछ भी नहीं । 'जो खुद की एक ही भूल मिटाए, उसे भगवान कहा जाएगा । ' दादाश्री - 'इस वर्ल्ड में कोई आपका ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) नहीं है । उसकी मैं आपको गारन्टी देता हूँ । कोई बाप भी आपका ऊपरी नहीं है। आपकी भूलें, वे ही आपकी ऊपरी हैं ! ' दादाश्री खुद कौन है, वह जान ले तो सब भूलें मिटाने का रास्ता कटने लगेगा और अंत में परमात्मा बन जाएगा! — जगत् का नियम कैसा है कि कोई आपको कुछ खराब कह जाए या आपका कोई खराब कर जाए तो आप सामनेवाले की भूल देखोगे और 'मुझे ऐसा क्यों कहा?' ऐसा करके खुद के साथ अन्याय हुआ है ऐसा मान लोगे। हकीकत में ‘न्याय' देखना ही नहीं होता । सामने से जो कुछ भी अनुकूल या प्रतिकूल आपको प्राप्त हुआ, वह आपके खुद के लाए हुए व्यवहार के हिसाब के अनुसार ही प्राप्त होता है, इसमें फिर न्याय देखने का कहाँ रहता है? हर एक का 'व्यवहार,' जैसा खुद (बाँधकर ) लाया है, वैसा ही व्यवहार खुलता रहता है और वापस, जो मिलता है वह हिसाब से ही मिलता है, उसमें जो 'न्याय' ढूँढने जाता है या कुदरत के व्यवहार को अमान्य करता है, उसे इसकी मार पड़े बगैर कैसे रहेगी ? 'यह मेरी भूल है' जिसे ऐसा समझ में आता है, उस स्टेज तक जो पहुँचा हुआ है, उसके लिए उसकी भूल मिटाने को 'न्याय' है और जिसे ऐसा रहता है कि 'मुझ से भूल नहीं होती' तो उसके समझने के लिए 'व्यवहार' है। सामान्य रूप से व्यवहारिक सुख - दुःख की जो समझ है वह 20
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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