SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-२ इसके अलावा और कुछ नहीं करना है । जेब काटनेवाले को ३६० डिग्री के सर्कल में जेब काटने का ही व्यापार करना है, ऐसा दृष्टिबिंदु नक्की हो चुका होता है। वह उसी को व्यापार मानता है । तब फिर उसके ग्राहक भी होते हैं न? कुदरत का संचालन कैसा है कि जिसकी भूल होती है, उसे जेबकतरे से मिलवा देती है । जिसने दु:ख भुगता उसी की भूल । 'भुगते उसी की भूल ।' अँधेरे की भूलें उजाले में पकड़ में आती हैं। जिसकी जेब कटी तब भूल पता चली ! १६६ जो चोर नहीं है, उसकी जेब काटनेवाला कौन है? जिसमें हिंसा का एक भी परमाणु नहीं है, उसे मारनेवाला कौन? साँप नज़दीक ही हो, तब भी वह उसे मार नहीं सकता । एक चारित्रवान पुरुष हो और साँप से भरे हुए रूम में से वह गुज़रे तो साँप एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाएँगे और मार्ग दे देंगे। साँप उस तरफ होगा तो वह साँप जलकर भस्मीभूत हो जाएगा। ऐसा है शील का प्रताप ! और आज तो मच्छरदानी बाँधी हो, फिर भी मच्छर काट जाते हैं। शीलवान को देखते ही हाथी, सिंह सभी भाग जाएँ। वहाँ पर बाघ ठंडा हो जाता है। और इन्हें तो, मच्छरदानी बाँधते हैं तो भी मच्छर काट जाते हैं। इन्हें क्या कहे? इनका शील कहाँ गया? मच्छरदानी बाँधते हैं फिर भी काट जाते हैं! उसे कैसे पहुँच पाएँ? भगवान ने शील किसे कहा है? किसी भी जीव को मन से, वाणी से, काया से, कषाय से, अंत:करण से कभी भी दुःख नहीं देने का जिसे भाव है वह शीलवान है ! उसे जगत् में कोई दुःख कैसे दे सकता है?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy