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________________ १६४ आप्तवाणी-२ कर रहा था, इसलिए मेरी उँगली आ गई। फिर से ऐसी शरारत मत करना।' बेटे को ऐसे समझाना चाहिए। लेकिन यह तो उसे मारता है। अरे, नई गुत्थियाँ क्यों डालता है? आज के पति तो पत्नी को डाँट देते हैं। उससे कहते हैं, 'यह दाल तो तूने विचित्र बनाई।' अरे, विचित्र तो तू है! भूल तेरी है इसलिए तेरे हिस्से में यह दाल आई! लोग कहते हैं कि जब तक यह देह है तब तक भोगवटा है, लेकिन नहीं, भूल हो तभी तक भोगवटा है। हमें नहीं भुगतना पड़ता, अतः हमारी भूल नहीं है। वाइफ ने आपकी आँख में दवाई डाली और आपकी आँख दुःखे तो वह आपकी भूल है। जो सहन करे उसकी भूल, ऐसा वीतराग कहते हैं। और ये लोग निमित्त को काटने दौड़ते हैं! _ 'भुगते उसी की भूल,' यह नियम मोक्ष में ले जाएगा। कोई पूछे कि, 'मुझे मेरी भूल किस तरह ढूँढनी चाहिए?' तो हम उसे सिखलाएँगे कि, 'तुझे कहाँ-कहाँ भोगवटा आता है? वह तेरी भूल। तेरी क्या भूल हुई होगी कि ऐसा भुगतना पड़ा, वह ढूँढ निकालना।' यह तो सारा दिन भोगवटा आता है इसलिए खोज निकालना चाहिए कि क्या-क्या भूल हुई है! ___हमें सामनेवाले की भूल किस तरह समझ में आती है? सामनेवाले का होम और फॉरेन अलग दिखता है। सामनेवाले की फॉरेन में भूलें होती हैं, फॉरेन में गुनाह हो तो हम कुछ नहीं बोलते, लेकिन होम में कुछ हो तब हमें उसे टोकना पड़ता है। मोक्ष में जाते हुए कोई अड़चन नहीं पड़नी चाहिए। सिर्फ 'भुगते उसी की भूल,' इतना कहा तो एक तरफ का पूरा पज़ल उड़ गया और दूसरा 'व्यवस्थित' कहा तो दूसरी तरफ का पूरा पज़ल उड़ जाता है। भीतर की अंतहीन बस्ती है, कौन भुगत रहा है, उसका पता चलता
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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