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________________ आप्तवाणी - २ में पड़ा रहता है। उसके कारण मुझे रातभर नींद नहीं आती। उसकी चिंता रात-दिन होती ही रहती है ।' १६२ मैंने कहा, 'तब तो भाई, तेरी ही भूल है । वह तेरी ही भूल के कारण ऐसा करता है। ये बाकी के तीन बेटे अच्छे हैं, तू उस चीज़ का आनंद क्यों नहीं लेता?' इस वृद्ध के बिगड़ैल बेटे से मैंने एक दिन पूछा, 'अरे, तेरे पिता जी को तो बहुत दुःख होता है और तुझे कोई दुःख नहीं होता?' बेटा ने कहा, 'मुझे किसका दुःख ? पिता जी कमाकर बैठे हैं, उसमें मुझे कैसी चिंता, मैं तो मज़े करता हूँ । ' यानी इन बाप-बेटे में से भुगत कौन रहा है ? बाप। इसलिए बाप की ही भूल है। 'भुगते उसी की भूल ।' यह बेटा नालायक हो गया, शराब पीता हो, कहीं भी भटकता हो, जुआ खेलता हो, चाहे जो करता हो, इसके बावजूद उसके भाई चैन से सो गए न? उसकी मदर भी चैन से सो गई हैं न! और यह अभागा, बूढ़ा अकेला ही जागता है । इसलिए उसकी भूल । उसकी क्या भूल? तब कहे, इस बूढ़े ने उस बेटे को पूर्व जन्म में बहकाया था, इसलिए पिछले जन्म के ऐसे ऋणानुबंध पड़े हैं । इसलिए बूढ़े को ऐसा भुगतना पड़ता है और बेटा अपनी भूल भुगतेगा तब उसकी भूल पकड़ी जाएगी। यह तो दोनों में से कौन भुन रहा है? जो भुन रहा है, उसी की भूल । बस एक इतना ही नियम समझ गए पूरा मोक्षमार्ग खुल जाएगा ! तो 'भुगते उसी की भूल,' यह वाक्य बिल्कुल एक्ज़ेक्ट निकला है, हमारे पास से! इसे तो जो-जो उपयोग में लेगा उसका कल्याण हो जाएगा। रास्ते में कुछ पड़ा हुआ हो और सिनेमा में से कितने ही लोग आजा रहे हों, फिर भी सिर्फ चंदूलाल को ही ठोकर लगती है। तब चंदूलाल कहेंगे कि, 'मुझे ठोकर लगी ।' 'अरे! तू ठोकर को लगा ! ठोकर तो हिलती भी नहीं और चलती भी नहीं । लेकिन तू भाग्यवान है कि तुझे ठोकर लगी। लेकिन भ्रांति से कहता है कि, 'मुझे यह ठोकर लगी ।' अरे ! यह तो 'भुगते
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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