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________________ १५६ आप्तवाणी-२ गुनहगारी - पाप पुण्य की यह गुनहगारी दो प्रकार की है। हमें फूल चढ़ाएँ, वह भी गुनहगारी और पत्थर पड़ें, वह भी गुनहगारी। फूल चढ़ें, वह पुण्य की गुनहगारी और पत्थर पढ़ें, वह पाप की गुनहगारी है। यह कैसा है? पहले जो भूलें की थीं, उनका कोर्ट में केस चलता है और फिर न्याय होता है। जो-जो भूलें की थीं, वे-वे गुनाह भोगने पड़ते हैं। वे भूलें भुगतनी ही पड़ती हैं। उन भूलों का अपने को समताभाव से निकाल करना है, उसमें कुछ भी बोलना नहीं है। बोलेंगे नहीं तो क्या होगा? समय होने पर भूल आती है और भुगतने के बाद वह निकल जाती है। उच्च जातियों में ऐसा बोलने से ही तो सारी गुत्थियाँ पड़ी हुई हैं न! इसलिए उन गुत्थियों को सुलझाने के लिए अगर मौन रखेंगे तो समाधान आए, ऐसा _ 'ज्ञानीपुरुष' की वाणी तो प्रत्यक्ष सरस्वती होती है और उसे सुनतेसुनते सबकुछ आ जाता है। जो-जो निमित्त आते हैं, वे भूलों का भुगतान करके जाते हैं। यह जो सुख मिलता है वह निमित्त से ही सुख मिलता है और दुःख भी निमित्त से ही मिलता है। 'ज्ञानीपुरुष' ने गुत्थियाँ नहीं डाली हुई थी, इसलिए उन्हें अभी आगे से आगे सारा वैभव मिलता रहता है। और आप सब को अभी इस जन्म में 'ज्ञानीपुरुष' मिल गए हैं, इसलिए पिछली उलझनों का समभाव से निकाल करके फिर से नई गाँठे नहीं डालोगे तो फिर वे गाँठें नहीं आएँगी और हल आ जाएगा। ग्रंथि-आदत, स्वभावमय खुद के सभी दोष दिखने चाहिए, ताकि दोष कहें, 'यह घर छोड़ो।' यह दोष दिखा, फिर तो कभी न कभी उसे जाना ही पड़ेगा। कुछ दोष तो प्याज़ की परतों जैसे होते हैं। प्याज की आठ-दस परतें होती हैं, उसी तरह दोषों की भी उतनी परतें होती हैं। कुछ दोषों की दो या पाँच तो कुछ दोषों की सौ-सौ परतें होती हैं। इसलिए हमने कहा है कि, "मन
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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