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________________ निज दोष १४५ भोजन परोसता हूँ, तब भी मुझसे थोड़ा-थोड़ा चटनी जितना ही परोसा जाता है, इसलिए मैं सुन पाऊँ उस तरह से सब लोग बोलते भी हैं कि बड़े कंजूस हैं। मेरी बीवी भी शिकायत करती है। लेकिन क्या करूँ? यह लोभी स्वभाव जाता ही नहीं। आप कुछ रास्ता बताइए। यह तो किसी और का खर्च करना हो, वहाँ पर भी यह लोभ मुझे नीचा दिखाता है।' उसके बाद हमने उसे बताया कि, 'आप सत्संग में रोज़ चलकर आते हो, तो अब से पैदल मत आना, लेकिन रिक्शे में आना और साथ में दस रुपये की रेजगारी रास्ते में बिखेरते-बिखेरते आना।' उसने ऐसा ही किया और उसका काम हो गया। ऐसा करने से क्या होता है कि लोभ की खुराक बंद हो जाती है और मन भी बड़ा बनता है। भूल को पहचानने से भूल मिटे भूल को पहचानने लगा, तो भूल मिटती है। कुछ लोग कपड़ा खींच- खींचकर नापते हैं और ऊपर से कहते हैं कि आज तो पाव गज़ कपड़ा कम दिया। यह तो इतना बड़ा रौद्रध्यान और फिर उसका पक्ष?! भूल का पक्ष नहीं लेते हैं। घीवाला घी में, किसी को पता नहीं चले ऐसे मिलावट करके पाँच सौ रुपये कमाता है। वह तो मूल के साथ वृक्ष बो देता है। खुद ही खुद के अनंत जन्म बिगाड़ देता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, अभी तक ज़्यादा दोष नहीं दिखते हैं। थोड़े ही दिखते हैं। दादाश्री : यहाँ सत्संग में बैठने से आवरण टूटते जाते हैं, वैसेवैसे दोष दिखते जाते हैं। दोष दिखने की जागृति प्रश्नकर्ता : दोष अधिक दिखें, उसके लिए जागृति किस तरह आती दादाश्री : भीतर जागृति तो बहुत है, लेकिन दोषों को ढूंढने की भावना नहीं हुई है। पुलिसवाले को जब चोर खोजने की इच्छा हो तब
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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