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________________ तो पुण्य से कमाई जाती है। जो यह भेद नहीं जानता, वह जब कमाता है तब कहता है, 'मैंने कमाया, मेरी बुद्धि से कमाया।' वह झूठा अहंकार है। मन के भाव सुधरें तो लक्ष्मी जी आती हैं। व्यभिचारी विचारों से सच्ची लक्ष्मी कभी भी नहीं आती। सच्ची लक्ष्मी ही शांति देती है। यह भ्रष्टाचार से कमाया हुआ कालाधन आए, वह तो जानेवाला है ही, लेकिन जाते समय रोम-रोम में सौ-सौ बिच्छू एक साथ डंक मारें, वैसे काटकर जाती है! लक्ष्मी जी का आना या नहीं आना, वह परसत्ता में है। इंसान को तो मात्र नैमित्तिक क्रिया ही करनी होती है, प्रयत्न करने होते हैं। लक्ष्मी जी के लिए निस्पृह नहीं हो जाना चाहिए, तिरस्कार भी नहीं करना चाहिए। तिरस्कार करे (दुत्कारने पर) तो कितने ही जन्मों तक प्रयत्न करने पर भी लक्ष्मी जी नहीं मिलें, ऐसा है। - दादा भगवान जगत् को नया सूत्र देते हैं। पुराने सूत्रों को तो लोग अब धोकर पी गए हैं। 'डिसऑनेस्टी इज द बेस्ट फूलिशनेस।' - दादाश्री जिसे मोक्ष में जाना हो, उसे तो 'नो लॉ-लॉ' मे आना पड़ेगा। 'नो लॉ-लॉ' में रहा, वह सहज प्रकृति में आ गया माना जाएगा। जहाँ-जहाँ लॉ लगाकर कंट्रोल करने जाएँ, वहीं पर उस लॉ के प्रति अभाव हो जाता है और प्रकृति विशेष उछाल मारकर डिकंट्रोल हो जाती है! 'इस वर्ल्ड को एक दिन सभी नियम निकाल देने पड़ेंगे। सबसे पहला, बगैर नियमवाला हमने किया है ! सरकार से कहेंगे कि देख जाओ, हमारे यहाँ बगैर नियम का संचालन!' । - दादाश्री नियम लादने से मन बिगड़ जाता है और फिर आचरण बिगड़ जाता है। नियम संकल्प-विकल्प खड़े करते हैं। आत्मा सहज है और नियम बंधन हैं, जो खुद को असहज कर देते हैं। - यथार्थ 'धर्मध्यान' किसे कहा जाता है? पूजा, जप-तप, सामायिक, प्रतिक्रमण, व्याख्यान सुनते हैं उसे? ना,
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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