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________________ १३० आप्तवाणी-२ कहलाती है। वे जा रही हों और मन में दुःख होता रहे कि, 'अभी और दो दिन बाद गई होतीं तो मुझे संतोष होता।' तो वह भी आर्तध्यान कहलाता है। या फिर आपने किसी पर क्रोध किया तो वह रौद्रध्यान हो गया। और यह किसी पर क्रोध करे और वापस पछतावा करे, वह आर्तध्यान हुआ कहलाता है। कुछ लोग क्रोध करने के बाद, 'क्रोध करने लायक ही था' ऐसा कहते हैं, इसलिए वह रौद्रध्यान, ज़बरदस्त रौद्रध्यान हुआ! डबल हुआ! क्रोध से तो रौद्रध्यान हुआ लेकिन 'करने लायक था,' ऐसा हुआ तो वह राजी-खुशी से करता है इसलिए डबल हुआ, और दूसरा व्यक्ति पछतावा करता है, इसलिए वह आर्तध्यान में जाता है। रौद्रध्यान भी, पछतावा किया इसलिए आर्तध्यान में जाता है, क्योंकि पछतावे सहित करता है। पैसे कमाने की भावना का मतलब ही रौद्रध्यान। पैसे कमाने की भावना यानी दूसरों के पैसे कम करने की भावना ही न? इसलिए भगवान ने कहा है कि, 'कमाने की तू भावना ही मत करना।' दादाश्री : तू रोज़ नहाने के लिए ध्यान करता है? प्रश्नकर्ता : नहीं साहब। दादाश्री : नहाने का ध्यान नहीं करता तब भी पानी की बाल्टी मिलती है या नहीं मिलती? प्रश्नकर्ता : मिलती है। दादाश्री : जैसे नहाने के लिए पानी की बाल्टी मिल जाती है वैसे ही ज़रूरत के अनुसार पैसे हर एक को मिल जाते हैं, ऐसा नियम ही है। यहाँ पर भी बेकार ही ध्यान करता है। सारा दिन बिस्तर का हिसाब लगाते रहते हो कि रात को बिस्तर बिछाने को मिलेगा या नहीं मिलेगा? यह तो शाम हो और सुबह हो, लक्ष्मी, लक्ष्मी और लक्ष्मी! अरे कौन गुरु मिले तुझे? कौन ऐसा मूर्ख गुरु मिला कि जिसने तुझे सिर्फ लक्ष्मी के पीछे ही लगाया! घर के संस्कार लुट गए,
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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