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________________ १२८ आप्तवाणी-२ खाई! कोई ही, सौ में से दो-पाँच साधु ही इससे बचे होंगे! बाकी सभी रौद्रध्यान, आर्तध्यान और नहीं करने लायक अपध्यान पूरे दिन करते रहते हैं। अब ये साधु किसलिए बनते हैं? तब कहे, आर्तध्यान और रौद्रध्यान को हटाने के लिए। घर पर पसंद नहीं, रोज़ झगड़े होते हैं, किसी के साथ पैसे लेने-देने पड़ें, उसके झगड़े होते हैं, इसके बजाय उसमें से छूट कर साधु बन जाए तो फिर खाने-पीने की चिंता तो मिटी और घर चलाने की, शादी करने की चिंता मिटी तो फिर आर्त और रौद्रध्यान छूटे ! इतना छोड़ने के लिए साधुपन लेना है। लेकिन अभी तो इन गृहस्थियों को जितने आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं होते, उतने इन महाराजों को हो गए हैं! सभी को इच्छा तो भगवान की आज्ञा में ही रहने की है। सच्चे दिल की इच्छा है, लेकिन मार्ग नहीं मिले तो क्या हो? भगवान के समय में नहीं थे ऐसे ध्यान, यहाँ इस काल में अभी खड़े हो गए हैं! यहाँ आपकी हर एक बात का खुलासा होता है। महावीर भगवान गए तब से २५०० साल से भट्ठी' शुरू हो गई थी। अब २५०० साल खत्म हुए हैं और वह भट्ठी' खत्म हो रही है और अब नया युग और सबकुछ नया ही शुरू हो रहा है! संसार का उपादान कारण संसार का उपादान आर्तध्यान और रौद्रध्यान है और वही अधिकरण क्रिया है। सिर्फ धर्मध्यान हो तो वह संसार में भटकाए ऐसा नहीं है और कभी उससे शुक्लध्यान भी प्राप्त हो जाता है। आर्तध्यान और रौद्रध्यान में तो पूरे दिन कढ़ापा और अजंपा रहता है। कढ़ापा रौद्रध्यान है और अजंपा आर्तध्यान है। यदि अंदर अजंपा होता रहता हो और वह सामनेवाले की समझ में आ जाए तो वह रौद्रध्यान में जाता है! रौद्रध्यान किसे कहते हैं? यह आर्तध्यान और रौद्रध्यान को आप पहचानते हो क्या? क्या काले
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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