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________________ धर्मध्यान ११९ मार जाए तो मार खाकर भाग जाते हैं। दूसरा, उनमें सामनेवाले पर आरोप लगाने की शक्ति नहीं है कि आपने मेरे साथ ऐसा किया या वैसा किया, ऐसा कुछ भी नहीं है। ऐसी उनमें भीतर बुद्धिशक्ति नहीं है । इन मनुष्यों को बुद्धि मिली तो दुरुपयोग किया ! बल्कि फँस गया! जहाँ छूटने को आया, वहीं पर फँस गया ! एक - एक कर्म से मुक्ति होनी चाहिए । सास सताए, तब हरएक बार कर्म से मुक्ति मिलनी चाहिए। तो उसके लिए हमें क्या करना चाहिए? सास को निर्दोष देखना चाहिए कि 'सास का भला क्या दोष? मेरे कर्म का उदय है, इसी वजह से वे मिली हैं । वह बेचारी तो निमित्त है,' तो उस कर्म से मुक्ति हुई । और यदि सास का दोष देखा तो फिर कर्म बढ़ेंगे। फिर उसका तो कोई क्या करे? भगवान भी क्या करें? भगवान तो क्या कहते हैं कि, " तू मेरी मूर्ति को रोज़ प्रणाम करता है लेकिन जब तक तू इस 'समझ' में नहीं आएगा, तब तक हम तुझसे ऐसा नहीं कह सकते कि 'तू पोइज़न पी और तेरा शरीर अच्छा हो ।' हमारी आज्ञा का पालन कर । हमारे दर्शन करने के बजाय यदि हमारी आज्ञा का पालन करेगा तो वह हमें विशेष प्रिय है क्योंकि यों तू दर्शन रोज़ करता है, लेकिन हमारे एक शब्द का भी तू पालन नहीं करता, इसका मतलब 'तू हमारी जीभ पर पैर रख रहा है ! उसके लिए तुझे शर्म नहीं आती?' तब वह कहेगा कि, 'साहब, ऐसा तो मैं जानता ही नहीं था कि मैं आपकी जीभ पर पैर रख रहा हूँ ।' और बात भी सही हैं। वह बेचारा यह जाने भी कहाँ से? लोग करते हैं, वैसा वह भी करता है और किसीने उसे सच्ची समझ भी नहीं दी, फिर वह बेचारा वापस कैसे मुड़ सकेगा? ऐसी सच्ची समझ दी हो, तब वह वापस मुड़ेगा । कर्म निर्झरें प्रतिक्रमण से एक कर्म भी कम हो जाए तो उलझनें दिनोंदिन कम होती जाएँगी। एक दिन में यदि एक कर्म कम करे तो दूसरे दिन दो कम कर सकता है, लेकिन यह तो रोज़ उलझनें डालता ही रहता है और बढ़ाता ही रहता है! ये सब लोग क्या अरंडी का तेल पीकर घूमते होंगे? उनके मुँह पर, जैसे अरंडी का तेल नहीं पीया हो, ऐसे होकर फिरते हैं। सभी अरंडी का
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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