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________________ धर्मध्यान ११७ उस भाई की जय-जयकार बुलवा रहा है, वह तो कल वापस झगड़ने जाएगा। इनका क्या ठिकाना? बुलवा जय वीतराग की, नमो वीतरागाय ! नमो वीतरागाय! प्रश्नकर्ता : क्या चिंता-उपाधि भगवान ने भेजी होंगी? दादाश्री : खुद को जैसा व्यापार करना आए, वैसा मिलता है। दही शुद्ध हो, दही बाज़ार का, मसाले बाज़ार के, लकडी बाज़ार की, पानी जो है वह भी वॉटर वर्क्स का, फिर भी सबकी कढ़ी में फर्क! हर एक की कढ़ी में फर्क होता है। किसीने तो कढ़ी ऐसी बनाई होती है कि अपना दिमाग़ खत्म हो जाए! इन सब को भगवान क्या कहते हैं कि, 'तुझे जैसा आए वैसा कर। तेरे हाथ में सत्ता है! कोई ऊपरी है ही नहीं, कोई डाँटनेवाला है ही नहीं। डाँटनेवाले तो अपनी भूल के कारण हैं, भूल नहीं हो तो कोई डाँटनेवाला है ही नहीं। अपनी भूल मिट जाए तो कोई डाँटनेवाला है ही नहीं, कोई ऊपरी है ही नहीं। कोई विघ्न डालनेवाला है ही नहीं। भगवान से कहें कि, 'साहब, आप तो मोक्ष में पहुँच गए लेकिन ये लोग मेरा चोरी कर जाते हैं, तो उसका क्या होगा?' तो भगवान कहेंगे कि, 'भाई, लोग चोरी करते ही नहीं। जब तक तेरे पास तेरी भूल है, तब तक चोरी करेंगे। तेरी भूल मिटा दे।' बाकी, कोई तेरा नाम भी नहीं ले सके, ऐसी तेरी शक्ति है! स्वतंत्र शक्ति लेकर आया हुआ है हर एक जीव। जीव मात्र संपूर्ण स्वतंत्र ही है। परतंत्रता लगती है, लोग उसे दु:ख देते हैं, उसे उसकी खुद की भूल से ही किसी का जमाई और किसी का ससुर बनना पड़ता है। अपनी भूल के कारण यह हाल हुआ है। वास्तव में देखें तो अपना कोई ऊपरी है ही नहीं, मात्र खुद की भूलें ही ऊपरी हैं। तो भूल मिटाओ और नयी भूलें मत होने देना। 'ज्ञानी' अर्थात् जो अज्ञान को नहीं घुसने दें। 'ज्ञान' नहीं मिला हो तब तक लोगों को धर्मध्यान में रहना चाहिए। सिर्फ भगवान का धर्मध्यान प्राप्त कर लें न तो बहुत हो गया! यदि कोई इतना ही निश्चित कर ले, कि जो कोई दुःख देता है, जो-जो करता है, जेब काटता है, वह किसी का दोष नहीं है, लेकिन दोष मेरा है, मेरे कर्म के उदय से है। अत: यदि
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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