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________________ आप्तवाणी-२ मन का स्वभाव ऐसा है कि एक्सेस हो जाए तो उस पर द्वेष होता है, ऐसी चीज़ों पर क्या कंट्रोल करना ? मनचाही चीज़ हो और ऊपर से कंट्रोल करे तो चित्त वहीं पर जाता है, चित्त का ऐसा स्वभाव है I १०४ छोटा बच्चा हो, उसे कहें कि, 'यह मत लेना' तो उसका चित्त वहीं चिपका रहेगा, अगर उसे दूसरा कुछ दें, तब भी नहीं लेता । इसीलिए दे देना चाहिए। वह 'व्यवस्थित' से बाहर कितना ले लेगा? कितना लुट जाएगा? अपने यहाँ तो नियम ही नहीं हैं न! कानून का मतलब अर्धकंट्रोल । अपने यहाँ अगर कहें कि, 'क्यों देर से आए? चार बजे ही आ जाना।' तो मन कंट्रोल में आ गया, इसलिए बिगड़ ही जाएगा। अगर कंट्रोल नहीं हो तो मन कितना मुक्त रहेगा ! सीमेन्ट का कंट्रोल करने गए तो भाव बत्तीस रुपये हो गया! सन् १९४२ के बाद यह कंट्रोल आया, उससे लोगों के मन बिगड़ गए। हम किसी को डाँटते ही नहीं । हम ऐसा नहीं कहते कि, 'ऐसा क्यों लाया और ऐसा क्यों किया?' सब को डाँटना नहीं पड़े ऐसा ही हमने रखा है। ‘नो लॉज़।' नियम - वियम कुछ नहीं । रसोई में कोई पतीला उल्टा रखे, फिर भी हम कुछ नहीं बोलते। उसे अपने आप ही एक्सपीरियन्स मिलेगा न! इस वर्ल्ड को एक दिन सारे ही नियम निकाल देने पड़ेंगे ! सबसे पहला बिना नियमवाला अपने यहाँ किया है ! सरकार से कहेंगे कि देखकर जाओ हमारे यहाँ बिना नियम का संचालन ! ये औरंगाबाद में सौ व्यक्तियों का बिना नियम के दस दिन तक कैसा चलता है! कैसा सुंदर चलता है ! चाय, पानी, नाश्ता! दूसरी सब जगह तो कितने नियम ! लॉज़ पर लॉज़ ! यह तो 'बगैर कानूनवाली मंडली' कहलाती है ! कानूनवाली मंडली में भगवान नहीं रहते हैं और बगैर कानूनवाली मंडली में भगवान रहते हैं ! भले ही चोर हों, लेकिन बगैर कानूनवाली हो तो भगवान वहाँ रहते हैं क्योंकि यदि ऐक्यता हो, तो भगवान वहाँ हाज़िर रहते हैं। इस गैरकानूनी मंडली में जिसे जैसा ठीक लगे वैसे बैठा हुआ
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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