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________________ आप्तवाणी-२ भगवान ने कहा, 'अरे, यह तो बरगद का पेड़ है न? वहाँ आम की आशा से तुझे क्या मिलेगा? अरे, पेड़ को पहचान! पेड़ को पहचानकर तू फल की आशा रख।' 'ज्ञानीपुरुष' के पास जा तो तेरा समाधान हो जाएगा। ये लोग तो भगवान को भूलकर लक्ष्मी जी को ढूँढ रहे हैं। जो भगत है, उसे लक्ष्मी जी की कमी रहती है। भगत और भगवान दोनों अलग होते हैं। वहाँ भेद होता है। भगत बहत बावले होते हैं। नियम कैसा है कि जहाँ बावलापन हो, वहाँ से लक्ष्मी जी चली जाती हैं। व्यवहार में ज्ञानी बावलेपनवाले नहीं होते, बहुत सतर्क होते हैं। भक्ति से 'ज्ञानीपुरुष' मिलते हैं और 'ज्ञान' प्राप्त होता है। 'ज्ञान' से मोक्ष होता है। भगवान ने क्या कहा था कि नर्मदा जी में पानी आता है तो वह नर्मदा जी के पाट के सामर्थ्य के अनुसार ही होता है। लेकिन यदि उसके सामर्थ्य से ज़्यादा पानी आए तो? तो वह किनारा-विनारा सब तोड़ डालता है और आसपास के गाँवों को डुबा देता है। लक्ष्मी जी का भी वैसा ही है। नॉर्मल आए, तब तक अच्छा। लक्ष्मी जी बिलो नॉर्मल आएँ तो भी फीवर है और एबव नॉर्मल भी फीवर है। एबव नॉर्मल तो फीवर बढ़ाता है। लेकिन दोनों तरह के स्टेजेज़ में लक्ष्मी फीवर स्वरूप बन पड़ती है। लक्ष्मी का स्वभाव कैसा है कि जैसे-जैसे लक्ष्मी बढ़ती जाए, वैसेवैसे 'परिग्रह' बढ़ता जाता है। लक्ष्मी के लिए कुछ लोग निस्पृह हो जाते हैं, तो निस्पृहभाव, वह कौन कर सकता है? जिसे आत्मा की स्पृहा हो वही निस्पृह भाव कर सकता है। लेकिन आत्मा प्राप्त हुए बिना आत्मा की स्पृहा किस तरह से हो? इसलिए सिर्फ निस्पृह हो जाता है और सिर्फ निस्पृही हुआ तो वह भटक मरेगा! यानी कि सस्पृही-निस्पृही हो तो मोक्ष में जाएगा। हम लक्ष्मी के विरोधी नहीं हैं कि हम लक्ष्मी का त्याग करें। लक्ष्मी का त्याग नहीं करना है, लेकिन अज्ञानता का त्याग करना है। कुछ लोग लक्ष्मी का तिरस्कार करते हैं। किसी भी चीज़ का तिरस्कार किया तो वह कभी भी फिर मिलती ही नहीं। सिर्फ निस्पृह हो जाए, तो वह तो सबसे बड़ा पागलपन है।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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