SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-२ की शक्तियाँ हैं इसमें। किसी भी चीज़ पर कंट्रोल हो, तब मन क्या करता है? प्रश्नकर्ता : कंट्रोल से बाहर हो जाता है, फिर निरंकुश, बेकाबू हो जाता है। दादाश्री : क्योंकि वह उसके स्वभाव से विरुद्ध है। मन क्या कहता है कि मुझे रोकना मत। प्रश्नकर्ता : उसी समय गुरु की ज़रूरत है। दादाश्री : हाँ, गुरु के बिना तो काम ही कैसे होगा? वह खुद कर ही कैसे सकता है? प्रश्नकर्ता : मन की वृत्ति जब बहुत ज़ोर पकड़े, तब गुरु की ज़रूरत पड़ती है। दादाश्री : गुरु के बिना कोई मोक्ष में नहीं गया है। सिर्फ तीर्थंकर कि जो स्वयंबुद्ध थे, वे गए हैं। लेकिन उन्हें पिछले किसी जन्म में गुरु मिले थे। उनके द्वारा उनको ज्ञानांजन का अंजन लग गया था, इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन अन्य लोग तो गुरु के बिना मार खा जाते हैं। सिर पर कोई नहीं हो तो स्वच्छंद खड़ा हो जाता है। अब इस मन को मारना, वह भी स्वच्छंद है, और मन को बहलाते-फुसलाते रहना, वह भी स्वच्छंद है! मन पर तो प्रभाव पड़ना चाहिए। यह किसके जैसा है, वह आपको समझाऊँ। इन भाई को यदि कोई व्यक्ति यहाँ मारने आया हो, लेकिन तब मुझे देखकर उसकी बोलती बंद हो जाती है, चुप हो जाता है, उसका क्या कारण है? तब कहे, प्रभाव। मुझे कुछ भी नहीं कहना पड़ता। वह तो प्रभाव काम करता है। उसी तरह 'अपना' मन पर प्रभाव पड़ना चाहिए। जब हमें गलत काम करना हो, तब जिस मन से हैल्प लें, तो फिर उस मन पर अपना प्रभाव किस तरह पड़ेगा? हो सके तब तक मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार पर अपना ऐसा प्रभाव पड़ना चाहिए कि यह चोर नहीं है। लेकिन
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy