________________ विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय शुभ ध्यानि श्रीनउकार [ जप] तु जि परोक्ष हूउ। मरी पांचमि देवलोकि दस सागरोपमनइ आऊखइ ब्रलेंद्र इसिं नामि इंद्र हूउ / रत्नवतीइ मारी तीणई जि इंद्र [ तणी ] सामानिक देवता हुई / तिहां थिकु च्यवी एक भव संसारमाहिं अवतरी दीक्षा लेई सकल कर्म क्षय करो केवलज्ञान ऊपार्जी बेहूं जणां मोक्ष लहशइ // कथा 6 // इति श्रीनवकार बालावबोध / ORE