________________ 40] नमस्कार बालावबोध [ गुजराती ___नमो अरिहंताणं // 1 // नमो सिद्धाणं // 2 // नमो आयरियाणं // 3 // नमो उवज्झायाणं // 4 // नमो लोए सव्वसाहूणं // 5 // एसो पंचनमुक्कारो // 6 // सव्वपावप्पणासणो // 7 // मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं // 8 // एहनउ अर्थ--" नमो अरिहंताणं-नमो अर्हद्भ्यः / " अरिहंत जेहे राग द्वेष कषायादिक अंतरंग अरि-वइरी हणिया छई। ते श्रीअरिहंत चउत्रीस अतिशय, पांत्रीश वाणीगुणे करी सहित समवसरणि बइठा विहरमाण छई / तेहंहूई, नमो कहीइ-माहरउ नमस्कार हओ। अरिहंत चंद्रमंडलनी परि श्वेतवर्ण ध्याईइं / एतलइ एक पद तथा एक संपद हुई / जेतलइ अर्थसमाप्तिनउ अधिकार हुइ, तेतलइ संपद जाणिवी / उच्छास ए बीजउं नाम / तिहां वीसामउ लीजइ / इम सर्वत्र जाणिवउं। ___हवइ, " नमो सिद्धाणं-नमः सिद्धेभ्यः"-सिद्ध जे आठ कर्मनिर्मुक्त हुई अनंतसौख्यमय मोक्षि पहुता सिद्धसिला ऊपरि जोअणनइ चउवीसमइ भागिं वर्तइ / तेह श्रीसिद्धहईनमो-नमस्कार हउ / श्रीसिद्ध ऊगता सूर्यनी परि रक्तवर्ण ध्याईइं / एतलई बि पद, बि संपद हुई। "नमो आयरियाणं नम आचार्येभ्यः"-आचार्य जे ज्ञानाचारादिक पंचविध आचार आपण पालई अनेराहूई पलावइं। शिष्यनइं द्वादशांगीनउ अर्थ कहइ। ते श्रीआचार्यहई नमो-नमस्कार हउ / आचार्य सुवर्णवर्ण ध्याईई / एतलई 3 पद, 3 संपद हुई / ___"नमो उवज्झायाणं-नम उपाध्यायेभ्यः"-उपाध्याय जे द्वादशांगीनउं सूत्र मुखाधीत गुणइं, शिष्यहई पढावई / ते उपाध्यायहई नमो-नमस्का हउ / उपाध्याय मरकतमणिनी परिं नीलवर्ण ध्याईइं / एतलई 4 पद, 4 संपद हुई। "नमो लोए सव्वसाहणं-नमो लोके सर्वसाधुभ्यः' लोके मनुष्यलोकमाहिं जे सर्वसाधु मोक्षमार्गसाधक जिनकल्पी प्रमुख घणे भेद ऋषीश्वर छई / ते सविहुंहूई नमो-नमस्कार हउ / महात्मा आसाढना मेघनी परि श्यामवर्ण ध्याईइं / एतलई 5 पद, 5 संपद हुई। ... एतलई पांत्रीशे अक्षरे श्रीनउकार मूलमंत्र कहींई / हवई आगलि चिहुं पदनी चूलिकामाहिं एह मूल-मंत्र प्रभाव कहइ छइ / “एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो-एप पंचनमस्कारः सर्वपापप्रणाशनः / " ए पांचहं परमेष्ठिनउ नमस्कार ते किसिउ छइ-सव्व पाव०-सर्व पाप तणउ प्रणाशन फेडणहार छइ / एतलई छट्ठउं अनइ बि पद हूआं / बि संपद हुइ छट्ठी, सातमी।। तथा-"मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं मङ्गलानां च सर्वेषां प्रथमं भवति मङ्गलम् / " सर्व मंगलीक जे लोकीक दधि दूर्वा अक्षत चंदनादिक; लोकोत्तर तप नियम संयमादिक; तेह सविहुं मंगलीकमाहिं, पढम-प्रथमं कहीइ–पहिलङ उत्कृष्टउं मंगलीक ए श्रीनउकार कहीइ / एतलई आठमउं अनइ नवमउं बिहु पद हूआं / बिहु पदे करी संपद एकजि आठमी हुई / एक चूलिकामाहि 'हवइ' नइ स्थानकि 'होई' इसिउंहु कहता केतलाइ बत्रीशजि अक्षर मानई, पुण मूलिं तेत्रीस अक्षर छइ /