________________ 24] श्रीनवकारस्तवन .. I हिन्दी [90-8]: श्रीप्रेमराज रचित श्रीनवकारस्तवन / जिन गणधर देव, पूरवधर केवली, महाग्यानी गुणवंत, जगत जन केवली। किणहि न पायो पार, मंत्र नवकारनो, चउदह पूरव सार, तार संसारनो // 1 // ए अझ(भु) त अरविंद सिंहासन सूलिका, पाचक पाणी होय, संकट सब चूरिका / समली सरसकुमार, वृषभ दो सुरपति, भणि नवकार प्रताप, भील विण नरपति // 2 // सकल मंत्र धुर राज, मंत्र राजा सही, वंछित पूरण आस, अधिक महिमा कही। इक अक्षर नवकार, जपो मन सुध करी, सागरोपम सान हरै, अघ खीन करी // 3 // लहि मानव अवतार, सार सुर तरु समो, कीजे तप नवकार, पंच गुरु पाय नमो / उत्तम पद अरिहत, लहीजै सब सिरे, तप परभावे काम, महा सगला सिरै // 4 // (प्रति-परिचय ) आ स्तवन कलकत्ता, जैनमंदिर 96, केनींग स्ट्रीटना हस्तलिखित संग्रह नं. 132-2997 मांथी मळ्युं छे, तेनु अहीं संपादन करवामां आव्युं छे / आ स्तवनना कर्ता प्रेमराज होवानुं तेनी अंतिम कडी उपरथी जणाय छे / आ प्रेमराजे सं 1724 पहेलां 'वैदर्मी चोपाई' रची छे / एक लोंकागच्छीय प्रेम नायक कवि थया छे जेमणे 'द्रौपदी रास' सं. 1691 मां अने 'मंगलकलशरास' सं. 1992 मां रचेला होवानुं जाण वामां आवे छे / आ स्तवनमां नमस्कारनो महिमा तेमज नमस्कारना उपधानतपनी विगत जणावी छ /