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________________ नवकाररास [84-2] श्रीजिनप्रभसू रिरचित नवकाररास। // नमः पञ्चपरमेष्ठिचरणकमलेभ्यः॥ पणमिवि रिसहजिणिंदु देव तियलोयदिवायरु, वीरु नमउ गंभीरु धीरु सासय सुहसारु / अजर अमर वर नाणवंत तिहुयण चूडामणि, सासयसुह संपत्त सिद्ध वंदउ ते निय मणि // 1 // अंग इगारह चउद पुव्व तिहुं पइ निम्मविया, गोयम गणहर पमुह सयल पणमउ आयरिया / सुयसायर गुणमणि खन्न तिहुयण विक्खाया, उवय(उ)त्ता उवएसदाणि पण[म]उ उवज्झाया // 2 // भवसंसारविरत्तचित्त सिवसुह उकंठिय, सतरभेय संजम पवत्त तव-उवसम संठिय / सायर जिम गंभीर थीर मण जिम कंचणगिरि, अप्पमत्त चारित्त जुत्त जे पिययम खमसिरि // 3 // अनुवाद * त्रिलोकदिवाकर देवाधिदेव श्री ऋषभजिनेन्द्रने प्रणाम करो. गंभीर, धीर अने शाश्वत सुखने मापनार श्री वीरजिनेन्द्रने नमस्कार करो. अजर, अमर, उत्तमोत्तम ज्ञानवंत, त्रिमुवनचूडामणी अने शाश्वत सुखने सारी रीते पामेला श्री सिद्ध भगवंतने ( तमारा ) पोताना मनमां (भावपूर्वक) वंदन (नमस्कार) करो. // 1 // जेओए त्रण पद (त्रिपदी) वडे अगियार अंग अने. चौदपूर्वनुं निर्माण कर्यु एवा श्री गौतमगणधर प्रमुख सकल आचार्योने प्रणाम करो. श्रुत (ज्ञान)ना महासागर, गुणमणीओनी खाणं, त्रणे भुवनमां विख्यात (प्रसिद्ध ) अने उपदेश आपवामां उपयोगवाळा ( कुशल ) एवा उपाध्यायोने प्रणाम करो. // 2 // भवसंसारथी विरक्त चित्तवाळा, शिवसुखनी उत्कंठावाळा, सत्तर प्रकारना संयममा प्रवृत्त, तप-उपशममां सारी रीते रहेला, सागर जेवा गंभीर, कंचनगिरि ( मेरुपर्वत )नी जेम निश्चल मन - अहीथी शरु थता सर्व अनुवादोमां मूळमां जेवू छे प्रायः ते ज अक्षरशः रजु करेल छे. तेथी व्याकरण वगेरेनी दृष्टिए आ अनुवाद न जोतां केवल भावनी दृष्टिए आ अनुवाद जोवो, एवी वांचकोने नम्र विनंति. ज्यां अनुवाद थइ शक्यो नथी, त्यां कौंसमां प्रश्नचिह्न (?) मूल छे. संपादक, संशोधक अने अनुवादक
SR No.023548
Book TitleNamaskar Swadhyay Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1980
Total Pages370
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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