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________________ (88) 3. उनको कोई विघ्न या बाधा नहीं रहती। 4. तथागत को अपने द्वारा उपदिष्ट धर्ममार्ग के सम्बन्ध में ऐसा कोई संशय या विचार नहीं होता कि यह सम्यक् प्रकार से दुःख क्षय की ओर नहीं ले जाता है। अपने इन्हीं दसबलों और चार वैशारद्यों के कारण तथागत परिषद् में सिंहनाद करते हैं और धर्मचक्र का प्रवर्तन करते हैं। अपने बत्तीस पुरुष लक्षण, अस्सी अनुव्यंजन, अष्टादश आवेणिक धर्म के माध्यम से वे श्रेष्ठता साबित करते हुए धर्मसंघ की स्थापना करते हैं। बुद्धत्व का अधिकारी निदानकथा के अनुसार जो आठ लक्षणों से युक्त हो, वही बुद्धत्व को प्राप्त हो सकते हैं। ये आठ लक्षण है मनुस्सत्तं लिंगसम्पत्ति हेतु सत्थारदस्सनं / पब्बजा गुणसम्पत्ति अधिकारी च छन्दता / / मनुष्ययोनि, लिंगसम्प्राप्ति (पुरुषलिंग), हेतु (बुद्धजीव), शास्ता के दर्शन, प्रव्रजित होना (प्रव्रज्या), गुण-सम्प्राति, अधिकार (शक्ति) व छन्दता (इच्छा स्वातन्त्र्य)। उपरोक्त आठ मूलभूत लक्षण बुद्धत्व प्राप्ति के आवश्यक अंग है। संयुक्तनिकाय-अट्ठकथा' में इन आठ धर्मों के अतिरिक्त चार बुद्ध भूमियाँउत्साह, उन्मार्ग, अवस्थान तथा हितचर्या तथा छ अध्याशय-निष्क्रम, प्रविवेक, अलोभ, अद्वेष, अमोह और निःसरण को प्राप्त करना भी आवश्यक है। जातक में बुद्धत्व के लिए तीनचर्या-जातत्थ, लोकत्थ, भूतत्थ तथा स्त्री, पुत्र, राज्य, अंग, जीवन परित्याग विषयक पांच महात्याग भी बताये हैं। इस प्रकार बुद्धत्व प्राप्ति के लिए ये गुण होना आवश्यक है। अर्हत्व एवं बुद्धत्व की प्राप्ति के उपया बौद्ध परम्परा में अर्हत्व-बुद्धत्व प्राप्ति के लिए साधक को कुछ अवस्थाओं या सोपानों से गुजरना पड़ता है। आध्यात्मिक विकास की इन अवस्था को भूमियाँ 1. निदानकथा हरिदास संस्कृत ग्रंथमाला) पृ. 237-239 2. संयुक्त निकाय अट्ठकथा 1-50 उद्धृत निदानकथा भूमिका पृ. 39 3. जातक सं. 552 उद्धृत वही. पृ. 40
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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