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________________ (84) 10. माता खड़े-खड़े ही प्रसव करती है। 11. माता की कुक्षि से निकलकर पृथ्वी पर गिरने भी नहीं पाते विचार देवपुत्र उन्हें लेकर माता के सम्मुख रहते हैं। 12. प्रसव के समय उनका शरीर कफ, रूधि आदि मलों से अलिप्त रहता है। 13. जब वे माता की कुक्षि से बाहर आते हैं, तब आकाश से शीत एवं उष्ण जल की दो धाराएं बहती है, उससे उनका एवं उनकी माता का प्रक्षालन होता है। ___ 14. जन्म के पश्चात् वे पैरों पर खड़े होकर उत्तर की मुँह करके सातकदम चलते हैं, श्वेत छत के नीचे सभी दिशाओं को देखते हैं और घोषित करते हैं कि इस लोक में मैं श्रेष्ठ हूँ, मैं अग्र हूँ, मैं ज्येष्ठ हूँ। यह मेरा अंतिम जन्म है, फिर मेरा जन्म नहीं होगा। 15. जन्म के समय सम्पूर्ण लोक में प्रकाश होता है तथा संसार की बुराईयाँ कुछ समय के लिए दूर हो जाती है। बुद्ध के शरीर के 32 लक्षण बुद्ध के शरीर को दीघनिकाय में निम्न 32 लक्षणों युक्त बताया है - 1. वे सुप्रतिष्ठतपाद होते हैं। 2. उनके पादतल में सर्वाकार परिपूर्ण चक्र होते हैं। 3. उनकी एड़ियाँ ऊंची होती है। 4. उनकी अंगुलियाँ लम्बी होती है। 5. उनके हाथ, पैर मृदु और कोमल होते हैं। 6. उनके हाथ और पैर की अंगुलियों के बीच छेद नहीं होते। 7. उनके पाँवों के टखने शंकु के समान वर्तुलाकार होते हैं। 8. उनकी जांघे हिरनी की जांघों के समान होती हैं। 9. उनके हाथ इतने लम्बे होते हैं कि वे बिना झुके अपनी हथेलियों से अपने घुटनों का स्पर्श कर सकते हैं। 10. उनकी जननेन्द्रिय चमड़े से ढकी होती है। 1. दीधनिकाय भाग-२ महापदानसुत्त 1.4.20 पृ. 15-16
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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