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________________ (80) कि वे अपनी भागवत सत्ता से मानव प्रकृति पर शासन कर रहे हैं। अवतार में एक विशेष अभिव्यक्ति होती है, वे दिव्य जन्म से ऊपर होते हैं, सनातन, विश्वव्यापक, विश्वेश्वर व्यष्टिगत मानवता के एक आकार में उतर आते हैं 'आत्मानं सृजामि' और वे केवल परदे के अन्दर ही अपने स्वरूप से सचेतन नहीं रहते, बल्कि बाह्य प्रकृति में भी उन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान रहता है। ___ अवतार स्पष्ट रूप से मनुष्य जैसे ही होते हैं। अवतार के सदा दो रूप होते हैं-भागवत रूप और मानव रूप। भगवान् मानव प्रकृति को अपना लेते हैं, उस सारी बाह्य सीमाओं के साथ भागवत चैतन्य और भागवत शक्ति की परिस्थिति, साधन और करण तथा दिव्य जन्म और दिव्य कर्म का एक पात्र बना लेते हैं। यदि ऐसा न हो तो अवतरण का उद्देश्य ही पूर्ण नहीं हो सकता। ___यदि अवतार अद्भुत चमत्कारों के द्वारा ही काम करें, तो इससे भी अवतरण का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। असाधारण अथवा अद्भुत चमत्कार रूप अवतारके होने का कुछ मतलब नहीं रहता। यह भी जरूरी नहीं है कि अवतार असाधारण शक्तियों का प्रयोग करें ही नहीं, क्योंकि असाधारण शक्तियों का प्रयोग मानव प्रकृति की संभावना के बाहर नहीं है, परन्तु इस प्रकार की शक्ति का प्रयोग न भी हो तो अवतार में कोई कमी नहीं आती, न यह कोई मौलिक बात है। अवतार ऐंद्रजालिक जादूगर बनकर नहीं आते, प्रत्युत्त मनुष्य जाति के भागवत नेता और भागवत मनुष्य के एक दृष्टान्त बनकर आते हैं। पर जब किसी संकट के मूल में कोई आध्यात्मिक बीज या हेतु होता है, तब मानव-मन और आत्मा में प्रवर्तक और नेता के रूप में भागवत चैतन्य का पूर्ण या आंशिक प्रादुर्भाव होता है, यही अवतार है। __ जैन और बौद्ध परंपरा इसके विपरीत दृष्टिगत होती है। दैवीय अंश का अवतरण मान्य न करके मानव स्वयं अपने पुरुषार्थ-बल-वीर्य-पराक्रम द्वारा कर्मों से जूझ कर दिव्यता स्वरूप परमात्म पद का वरण करते हैं / हाँ! आत्मा में आंशिक शक्ति विद्यमान है, किन्तु उसका पूर्ण प्राकट्य स्वयं को ही करना होता है। न उसमें दैवीय शक्ति सहायक हो पाती है, न अन्य कोई साधन / यद्यपि प्रयोजन सदृशता सर्वत्र ऐक्यता लिए हुए है-धर्म संस्थापना एवं लोक मंगल / साध्य एक होने पर भी साधन सर्वथा भिन्नता धारण किए हुए हैं।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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