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________________ (74) का त्राण हेतु पुरस्सर होता है, वहाँ अर्हत् परमेष्ठी द्वारा धर्म संघ की प्रतिष्ठापना लोककल्याण एवं विश्वमैत्री की भावना से ओतप्रोत होकर की जाती है। ( 3 ) 'भूभारहरण" नहीं अपितु आत्म स्वराज्य हेतु 'मुक्तिवरण' दुष्टों का संहार एवं साधुओं का संरक्षण, इस हेतु के साथ एक अन्य भी प्रयोजन अवतार का है। सृष्टि का सृजन एवं संहार दोनों उद्देश्य को लेकर ही अवतार का जन्म होता है। महाभारत के शांतिपर्व में आलेखित है कि 'परमेष्ठी ब्रह्मा ने सर्व प्रजाओं को उत्पन्न किया। उसमें दैत्यों, दानवों, गंधों तथा राक्षसों की संख्या भी बहुत है। वास्तव में यह पृथ्वी उनके भार द्वारा दब गई है। साथ ही इस पृथ्वी पर अनेक दैत्य, दानव, राक्षस आदि बहुल बलवान् होंगे। क्योंकि भिन्न-भिन्न तपश्चर्या आदि करके उत्तम वरदान प्राप्त कर लेंगे। फलस्वरूप वे गर्विष्ट बनकर देवों, ऋषियों और तपोधनों को दुःख देंगे। अतः इस कारण अनेक स्वरूप धारण करके दुष्टों को संहार करके, सज्जनों का रक्षण करके पृथ्वी का भार हल्का करूं। युगों-युगों में शरीर धारण करके पृथ्वी का रक्षण करूं।' __अर्हत् परमेष्ठी का संहार व्यक्ति परक, दुष्परक न होकर दुष्टता, व्यक्तित्व परक है। भूभारहरण हेतु दुष्टता का नाश होकर मुक्ति-वरण को प्राधान्य दिया गया है। दुष्टता का संहार, कर्मों का नाश है। जब कर्म शत्रुओं का नाश होगा तो कर्मों से मुक्त होने पर मुक्तिवरण होगा। आत्मा का मोक्ष हो जावेगा। जहाँ अवतरण का उद्देश्य भू भार हरण हेतु संहार है, वहाँ अर्हत् का आगमन भी संहार हेतु तो है किन्तु वह संहार दुष्टता का है। क्रोधादि कषायों का, रागद्वेष की परिणति का, एवं घाति-अघाति कर्मों का है। कर्म-क्षय करके आत्मसाम्राज्य की प्राप्ति हेतु मुक्तिवधू का वरण यहाँ अपेक्षित है। दुष्ट संहार में आत्मा का अधोगमन, दुर्गति होती है जबकि कर्म-संहार हो जाने पर चेतना का उर्ध्वारोहण होकर मुक्ति हो जाती है। इतर दर्शनों में अर्हत् विषयक अवधारणा___ जैन परंपरा के मन्तव्यानुसार अर्हत् परमेष्ठी की भिन्न-भिन्न पर्यायें हैं, यथासर्वज्ञ, जिन, केवली, तीर्थङ्कर आदि। यहाँ आध्यात्मिक स्तर पर सर्वोच्च कक्षा अर्हत् परमेष्ठी की है। जैन दर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों में यह कक्षा किस कोटि की है? यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अन्य दार्शनिक परम्परा में अर्हत् का 1. महाभारत शांति पर्व 349/29-37
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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