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________________ (65) इस योग्यता के लिए विशिष्ट साधनाओं को मान्य किया है, परन्तु इनकी संख्या में कुछ मतभेद है। श्वेताम्बर परम्परा में मान्य आगमों में यह संख्या 20 उल्लिखत है, तो तत्त्वार्थ सूत्र में 16 / इस तत्त्वार्थ के आधार पर दिगम्बर परंपरा भी अर्हत्/तीर्थङ्कर नामकर्म उर्पाजन हेतु 16 पद की साधनाओं को मान्य करती है। श्वेताम्बर परम्परा में मान्य बीस स्थानक पद निम्न है 1. अर्हत् 2. सिद्ध 3. प्रवचन 4. गुरु 5. स्थविर 6. बहुश्रुत 7. तपस्वी 8. ज्ञान 9. दर्शन 10. विनय 11. आवश्यक 12. निरतिचार 13. क्षणलव 14.तप 15. त्याग 16. वैयावृत्य 17. समाधि 18 ज्ञानवृद्धि 19. श्रुतभक्ति 20. प्रवचन प्रभावना। आवश्यक नियुक्ति-चूर्णि' (आव. नि. पृ. 134-135), ज्ञाताधर्मकथाङ्ग (ज्ञाताधर्म. 1.8.18), प्रवचन सारोद्धार (प्रव.सारो, 882-903), त्रिषष्ठी शलाका पुरुष (10.1.229) में इन्हीं बीस स्थानकों का उल्लेख किया गया है। जो भी अर्हत्/तीर्थङ्कर होंगे, उनके लिए आवश्यक है, तीर्थङ्कर नामकर्म का तृतीय भव में उपार्जन करना। श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परंपरा में इस तथ्य को तो मान्य किया ही है। किन्तु इन संख्याओं में मतभेद हैं। तत्त्वार्थ सूत्रकार ने इन पदोंका समावेश 16 पदों में ही कर दिया है। बंधहेतु के 16 पद निम्न हैं 1. दर्शन विशुद्धि-वीतराग कथित तत्त्वों में निर्मल और दृढ़ रुचि। 2. विनय सम्पन्नता-मोक्षमार्ग और उसके साधनों के प्रति समुचित आदरभाव। 3. शीलव्रतानतिचार-अहिंसा, सत्यादि मूलव्रत तथा उनके पालन में उपयोगी अभिग्रह आदि दूसरे नियम या शील के पालन में प्रमाद न करना। 4. अभीष्ठा ज्ञानोपयोग-तत्त्व विषयक ज्ञान प्राप्ति में सदैव प्रयत्नशील रहना। 5. अभीक्ष्य संवेग-सांसारिक भोगों से जो वास्तव में सुख के स्थान पर दुःख के ही साधन बनते हैं, डरते रहना। 6. यथाशक्ति त्याग-अपनी अल्पतम शक्ति को भी बिना छिपाए आहार दान, अभयदान, ज्ञानदान आदि विवेकपूर्वक करते रहना। 1. आव. नि. पृ. 134-135 2. ज्ञाताधर्म 1.8.18 3. प्रव. सारो 882-903 4. त्रिषष्ठी श. 10.1.229
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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