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________________ (357) मंत्र का जाप, ध्यान, स्मरण स्वयं सापेक्ष है। इसकी साक्षरता स्वयं के ज्ञान में निहित है। कहा जाता है जो नवकार को जाने वह जैन और उसे गिने वह भी जैन। इस प्रकार ज्ञान स्वरूप होने के साथ-साथ क्रियात्मक स्वरूप होने के कारण क्रिया स्वरूप भी है। नवकार से सर्व पापों का नाश होता है। जिसके फलस्वरूप सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल का लाभ होता है। वस्तुतः अष्ट कर्मों का मूल स्रोत पाप हैं, ये ही सर्व दुःखों का मूल भी है। अनन्त चतुष्टय (ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप) ये मंगलमय है। यही अव्याबाध सुख का कारण भी हैं। सर्व प्रयोजनों के प्रयोजन, दुःखों का आत्यन्तिक क्षय और अव्याबाध सुख की प्राप्ति इससे होती है। दुःखों का क्षय, कर्मक्षय से होता है। कर्मक्षय चित्तसमाधि से होता है। और चित्तसमाधि का कारण बोधिलाभ (ज्ञान) है। इस प्रकार परमेष्ठी पदों का ज्ञान तथा स्मरण, मनन, ध्यान, जाप आदि अनुष्ठान क्रियात्मक होने से ये ज्ञान एवं क्रिया उभय स्वरूप है। कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग का त्रिवेणी संगम इन परमेष्ठी पदों में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग का त्रिवेणी संगम भी हुआ है। वह किस प्रकार? इसकी आराधना से जीवराशि पर स्नेहपरिणाम का विकास होता है और द्रव्य गुण पर्याय से शुद्ध आत्मस्वरूप का बोध होता है। परमेष्ठी पद की आराधना यह कर्मयोग है, उससे होने वाले स्नेहपरिणाम का विकास भक्तियोग है, और उससे भी होने वाला आत्म स्वरूप का बोध, यह ज्ञानयोग है। इस प्रकार ज्ञान, भक्ति, और कर्म इन तीनों का सुमेल होने से यह आराधना जीव को मोक्षमार्ग रूप बनकर सकल कर्मों का क्षय करने में सहायक होतीहै। ___ कर्मयोग से तमोगुणरूपी मैल धुल जाता है, भक्तियोग से रजोगुण का विक्षेप होता है और ज्ञान योग से अविशुद्ध सत्त्वगुणजनित आवरण दूर होता है। कर्मयोग सतताभ्यास रूप है। भक्तियोग विषयाभ्यास रूप है। ज्ञानयोग भावाभ्यास रूप है।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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