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________________ _ (347) रचे जाने का एहसास होता है। नमस्कार मंत्र के अतिरिक्त अन्य अनेक मंत्र भी दृष्टिगत होते हैं। किन्तु सर्वाधिक प्रचार इस महामंत्र का है। सभी जैन सम्प्रदाय एकमत से इसे स्वीकारते हैं। साम्प्रदायिक मतभेद होने के बावजूद भी नमस्कार महामंत्र की महिमा अक्षुण्ण है। यहाँ तक कि जप-माला को भी नवकारवाली अथवा नोकरवाली कहा जाता है। तथा सूर्योदय के पश्चात् जब प्रथम बार आहार ग्रहण किया जाता है, तब उसका संकल्प सूत्र का भी 'नमुक्कार सहियं से प्रत्याख्यान किया जाता है। पूजा विधान, ध्यान, जाप आदि सभी आचारों में भी इसका ही प्राधान्य रहता है। सर्व प्रसंगों में इसका स्मरण मंगलमय माना गया है। यह मंत्र सर्व पापों का नाश करने की अद्भुत शक्ति सम्पन्न है, तब इहलौकिकपारलौकिक विघ्नों से रक्षण कर अनुपम सुख सम्पत्ति प्रदान करता है। इस प्रकार यह नमस्कार मंत्र जैन धर्म की आधारशिला तो है ही, साथ ही अन्तिम साध्य भी ये ही पंच पद है। ___वास्तव में जैन धर्म में मंत्र स्मरण साधना की एक विद्या ही मानी गई है। साध्य की सिद्धि में आत्यन्तिक साधना रूप इसे मान्य न करके वीतरागत्व, कषायजय तथा समता साधना को प्रमुख रूप से अंगीकार किया है। मंत्र स्मरण को मात्र मन की एकाग्रता, ध्यान की स्थिरता में सहायक भूत स्वीकार किया है। आत्मा की शुद्धावस्था की सिद्धि में इसे प्राधान्य न मानकर गौण मान्य किया है। पंच पदों के स्मरण तक ही इति श्री न मानकर पंचपदमय जीवनयापन ही यहाँ प्रधान लक्ष्य है। मंत्र शिरोमणि नवकार ___ मन्त्र वही है जिसके स्मरण से कार्य सिद्धि हो। मन्त्र अक्षर या अक्षरों का समूह है, अर्थात् अक्षर या वर्ण समूह से मन्त्र बनते हैं। प्रत्येक अक्षर मंत्र-बीज युक्त होता है। इस दृष्टि से अक्षर-रहित मन्त्र का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता। 'नास्त्यनक्षरं मन्त्रम्'-यह सूत्र इसी भाव का दर्शक है। अक्षर अथवा अक्षर समूह (शब्द) में अपरिमेय शक्ति विद्यमान रहती है। जिस प्रकार शब्दों के विभिन्न ध्वन्यात्मक प्रभाव हैं, उसी प्रकार वर्ण और वर्ण समूहात्मक शब्दों के महत्त्व प्रभाव भी विभिन्न अनुभव क्षेत्रों में प्रत्यक्ष होते पाये गये हैं अतः शब्द शक्ति अचिन्त्य है। इसके यथोचित प्रयोग एवं समन्वय के सम्यक् ज्ञाता दुर्लभ है। मन्त्र में प्रयोजित अक्षर, वर्ण अथवा उनके समूहात्मक शब्दों का संयोजन मात्र ही कार्य-साधक शक्ति हो, सो बात नहीं। इसमें समानान्तर अन्य अनेक
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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