SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (336) साधना-ध्यान सिद्धि में सहायक : रंग ___ साधु का रंग काला है, काले रंग में उष्णता व अग्नि दोनों है। उपाध्याय का नीला रंग है। नीला रंग भी अग्नि का है। यदि कि 'फ्लैम्स' को देखें तो वह नीली होती है। कोयला काला है, तो उसमें भी अग्नि है। नीले रंग में तो और भी तेज लौ होती है। इसका मतलब यह है कि कोयले से यानि काले रंग से साधु तेज बनता है, तो नीले रंग की तरह उपाध्याय में पहुँच जाता है। पीला रंग भी अग्नि से संबंधित है। इस प्रकार आचार्य तक को काला, नीला और पीला होना होता है। क्या धूप में कम गरमी है? यहाँ भी अग्नि होती है। सिद्धों का रंग लाल है। क्या लाल रंग में अग्नि नहीं होती? इसमें भी अग्नि भरपूर होती है, किन्तु वह सौम्य रूप में रहती है। इसका मतलब यह है कि सारा ही ध्यान निर्जरा पर केन्द्रित है। येन केन प्रकारेण कर्मों से मुक्त हो जाएं। श्वेत रंग अर्हत् का है। लाल रंग को यदि लाल प्रकाश में देखें तो वह लाल नहीं दिखाई देता, उसमें वह श्वेत रंग ही दिखता है। तात्पर्य यह है कि श्वेत रंग लाल रंग में निहित है। वस्तुतः श्वेत में सभी रंग निहित है। इसका अर्थ यह हुआ कि अर्हत् में साधु भी मौजूद है। साधुत्व, उपाध्यायत्व और आचार्यत्व भी विद्यमान है। वास्तव में श्वेत एक स्पेक्ट्रस है। कुल मिलाकर यदि हम देखें, तो रंगों को रंग-विज्ञान को इसमें काफी सोच समझकर गंभीरता और दूरदर्शितापूर्वक चिन्तन-मनन के साथ जोड़ा गया है या ये वर्ण पंचपरमेष्ठी में जुड़ गये हैं। उनकी अपनी विशिष्ट भूमिका है। पंच परमेष्ठी के ये पंच वर्ण (रंग) शक्ति के प्रतीक बनकर हमें आत्मोपलब्धि की दिशा में प्रवृत्त कर सकते हैं। हमारे शरीर में भी सभी रंगों की उपस्थिति है। रंगों का संतुलन और संयोजन हमारे शरीर में भी हैं। यदि इनमें से एक भी रंग की कमी या अधिकता हो जाए, अनुपात या संतुलन बिगड़ने लगे तो शरीर में अशान्ति/घबराहट पैदा हो जाती है। शरीर रुग्ण भी हो सकता है। शरीर में संबंधित रंग की कमी को पूरा करने के लिए विटामिन्स लेने पड़ते हैं। रंग चिकित्सा भी इसका निदान करती है। इन संबंधित रंगों की पूर्ति पंच पदों के संबंधित रंगों से भी हो सकती है। इन रंगों की पूर्ति इन पदों के अभीक्ष्ण ध्यान से हो सकती है। इससे रंगों की पूर्ति ही नहीं होगी, बल्कि रंगों से निर्विकारता, सात्विकता भी आयेगी। हमारे शरीर में इन पदों 1. तीर्थंकर पृ. 68-77
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy