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________________ (292) 1. कर्म परिग्रह-राग द्वेष के वशीभूत होकर अष्ट प्रकार के कर्मों को ग्रहण करना। 2. शरीर परिग्रह-जीवों का शरीर धारण करना, शरीर परिग्रह है। 3. बाह्य भाण्डमात्र परिग्रह-बाह्य वस्तु और पदार्थ आदि। वास्तव में अन्तरङ्ग और बाह्य परिग्रह में इन तीनों का ही समावेश हो जाता है। अन्तरङ्ग परिग्रह प्रश्नव्याकरण सूत्र में अन्तरंग परिग्रह के लिये कहा गया है कि "लालसा, तृष्णा, इच्छा, आशा और मूर्छा ये अन्तरंग परिग्रह हैं, जो कि बाह्य परिग्रह का कारण है। अंतरंग परिग्रह के यहाँ पाँच कारण दर्शाये हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग। बृहत्कल्प भाष्य में चौदह कारणों का कथन हैं- 1. क्रोध 2. मान 3. माया 4. लोभ 5. राग 6. द्वेष, 7. मिथ्यात्व 8. वेद 9. अरति 10. रति 11. हास्य 12. शोक 13. भय 14. जुगुप्सा। कहीं पर राग और द्वेष को कषाय में सम्मिलित कर वेद के स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसक वेद इस प्रकार 14 भेद दिखाई देते हैं।" वस्तुतः मूल रूप से विषय, कषाय, राग, द्वेष, मिथ्यात्व आदि के कारण मूर्छावश होकर कर्मबंध करके जीव संसार में परिभ्रमण करता रहता है। बाह्य परिग्रह ___ यद्यपि साधु के लिए अंतरंग और बाह्य सभी परिग्रह त्याज्य है, तथापि आवश्यकतानुसार साधु को आवश्यक कुछ वस्तुएँ रखने की छूट दी गई है। बाह्य परिग्रह की दृष्टि से दिगम्बर एवं श्वेताम्बर परम्परा में किंचित् मतभेद है। दिगम्बर परम्परा में मुनि की आवश्यक वस्तुओं (उपधि) को तीन भागों में 1. ज्ञानोपधि-शास्त्र, पुस्तक, कलम आदि 2. संयमोपधि-मोरपंख से निर्मित पिच्छि आदि 1. प्रश्न पृ.७६१ 2. प्रश्न वृत्ति पृ. 761 3. बृहत्वकल्प 1.831, प्रतिक्रमणत्रयी पृ. 175 4. वहीं. 1.831 देखिए बोल संग्रह भाग-५ पृ. 33
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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