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________________ (26) अष्टम काण्ड में अथर्ववेद में उल्लेख है-'देव, इन्द्र, विष्णु, सविता, रुद. प्रजापति, परमेष्ठी, विराट. वैश्वानर वगैरह सभी ऋषियों ने आकर पुरुष के हाथ में मणि और कवच के जैसा बांधा' / यहाँ परमेष्ठी से तात्पर्य किसी देवता विशेष से है। क्योंकि इन्द्र, विष्णु, सविता, रुद्र, अग्नि, प्रजापति, परमेष्ठी, विराट् और वैश्वानर आदि देवताओं के साथ परमेष्ठी को भी देवता कहा गया है। यहाँ कहीं कहीं प्रजापति मात्र को परमेष्ठी कहा गया है तो कहीं पर परमेष्ठी व प्रजापति दोनों का स्वतन्त्र रूप से उल्लेख किया गया है। नवम काण्ड में गाय के स्वरूप वर्णन में प्रजापति-परमेष्ठी स्वतन्त्र देवता कहे गये हैं। __ दशम काण्ड में परमेष्ठी को परमात्म स्वरूप मान्य किया है। इस सन्दर्भ में परमात्म स्वरूप परमेष्ठी कैसे प्राप्त किया जाय? इसकी चर्चा करते कहा है, "यह पुरुष श्रोत्रिय गुरु को, परमेष्ठी परम गुरु को किसकी प्रेरणा से प्राप्त करता है? इस प्रश्न का समाधान करते हैं कि ब्रह्म (मंत्र) से श्रोत्रिय गुरु को और ब्रह्म से परमेष्ठी को प्राप्त करता है। यहाँ ब्रह्म से तात्पर्य है ज्ञान / अर्थात् ज्ञान से ही परमात्मा परमेष्ठी का ज्ञान होता है। सातवलेकराचार्य ने परमेष्ठी शब्द की व्याख्या गहन एवं सुन्दर रीति से की है, "परमेष्ठी" शब्द का अर्थ है"'परम स्थान में रहने वाला आत्मा।' परे से परे जो स्थान है, उसमें जो रहता है, वह परमेष्ठी परमात्मा है। (1) स्थूल (2) सूक्ष्म (3) कारण (4) महाकारण, इनसे वह परे है, इसलिए उसको परमेष्ठी किंवा "पर-तमे-ष्ठी" परमात्मा कहते हैं। इसका पता ज्ञान से ही चलता है। सबसे पहिले अपने ज्ञान से सद्गुरु को प्राप्त करता है तत्पश्चात् उस सद्गुरु से दिव्यज्ञान प्राप्त करके परमेष्ठी परमात्मा को जानना होता है। परमात्मा-स्वरूप में यहाँ परमेष्ठी स्वीकार किया गया है, यह प्रतीति होती है। इसी तथ्य को और अधिक स्पष्ट करते हैं कि 'जो पुरुष ब्रह्म को जानता है, वह परमेष्ठी को जानता है। जो परमेष्ठी को जानता है, वह प्रजापति को जानता है। यहाँ परमेष्ठी से तात्पर्य ब्रह्म से परे लिया है। ब्रह्म से उच्चावस्था परमेष्ठी परमात्मा की है। इसी संदर्भ में सातवलेकराचार्य का कथन है कि 'जो पुरुष मनुष्य के अंदर ब्रह्म को जानते हैं, वे ही परमेष्ठी परमात्मा को जानते हैं।' यहाँ 1. (क) 9.3.11 (ख) अथर्व. 8. 5. 10. 2. अथर्व. 10. 3. 24. 11. 5.7. 3. अथर्व. 10. 2. 20-21 4. अथर्व, सातवलेकर भा. 10. 2. 20-21. 5. 1. अथर्व. 10.7.17. 2. अथर्व. 105.42. 6. अथर्व. सातवलेकर भा. 10.7.17.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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