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________________ (278) 2. सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं (सत्य महाव्रत) सर्वतः मृषावाद से विरत होना अर्थात् सम्पूर्णतः असत्य का परित्याग करना, यह साधु का दूसरा महाव्रत है। साधु को मन, वचन एवं काया द्वारा कृत, कारित एवं अनुमोदित इन नव कोटियों के साथ असत्य से विरत होना होता है और सत्य पर आरोहण करना होता है। दूसरी ओर मन, वचन और काय में एकत्व का अभाव होना मृषावाद है, तो इन तीनों योगों में एकीभाव होना सत्य महाव्रत की परिपालना है। सत्य महाव्रत के सन्दर्भ में वचन शुद्धि अर्थात् वचन की सत्यता पर विशेष बल दिया गया है। क्योंकि सत्य ऐसा सजग प्रहरी है कि उसकी सजगता में अन्य बुराईयाँ पास में फटक नहीं सकती। __ असत्य का मूल स्रोत क्या है? किन आन्तरिक वृत्तियों के कारण असत्य जन्म लेता है। जैन दार्शनिकों ने असत्य का मूलकारण मिथ्यात्व कहा है। मुख्य रूप से असत्य चार कारणों से बोला जाता है-क्रोध से, लोभ से, भय से और हास्य से। क्रोध के आवेश में, लोभ में मन लुभाया हो, भय का भूत मन पर सवार हुआ हो अथवा हास्यास्पद प्रसंग हो तो मानव मन सहज ही असत्य भाषण में प्रवृत्त हो जाता है। जब ये विकार मन को विकृत बना देते हैं, तब मानव विवेक की पराकाष्ठा चूक जाता है, उसका विवेक नष्ट हो जाता है। फलस्वरूप उसकी वाणी और व्यवहार में असत्य झलकने लगता है। आचार्य अगस्त्यसिंह स्थविर, आचार्य जिनदासगणि महत्तर और आचार्य हरिभद्रसूरि ने इन चार कारणों का विश्लेषण करते हुए कहा है कि ये चारों कारण उपलक्षण मात्र है। क्रोध से मान को, लोभ से माया को भी ग्रहण किया है। भय और हास्य के कथन से राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान आदि कारणों का भी ग्रहण किया गया है। इस प्रकार अनेक वृत्तियों को असत्य का कारण बताया गया है। मूलतः चार कारण, क्रोध, लोभ, भय और हास्य के कारण असत्य बोलने का विधान किया गया है। इन चूर्णियों में मृषावाद के चार प्रकारों का भी कथन किया गया है 1. सद्भाव प्रतिषेध-जो है, उसके विषय में यह नहीं है। यथा-जीव, पुण्य, पापादि के सम्बन्ध में कहना कि ये नहीं हैं। 1. निशीथचूर्णि 3988 2. दशवैकालिक सूत्र 4.12 3. दश चूर्णि, प 145 4. दश चूर्णि प. 148 5. दशवै. हारिभद्रीय टीका पत्र. 146 6. दश. चूर्णि अगस्त्यसिंह दश. चूर्णि जिनदासमहत्तर पृ. 148
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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