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________________ (271) 4.मूसावाद (मृषावाद) विरमण, 5. सुरामेरमद्य (मादक द्रव्य) विरमण 6. विकाल भोजन विरमण, 7. नृत्य गीतवादित्र विरमण, 8. माल्य धारण, गन्ध विलेपन विरमण 9. उच्चशय्या, महाशय्या विरमण 10. जातरूप रजतग्रहण (स्वर्णरजतग्रहण) विरमण। ___ उपर्युक्त बौद्ध परम्परा मान्य दसशीलों में से 6 शील, पंच महाव्रत एवं छठा रात्रि भोजन विरमण व्रत के अत्यधिक समान है। यद्यपि अन्य चार का समावेश व्रतों में तो नहीं किन्तु इन चारों को भी साध्वाचार से विरुद्ध एवं वर्जनीय कहा गया है। 1.सव्वाओ पाणाइवायाओवेरमणं (अहिंसा महाव्रत)-प्राणीवध का सर्वथा निर्वर्तन करे। प्राणों को धारण करे वह है प्राणी। जैन परम्परा में प्राणों के दस प्रकार है- 1.श्रोतेन्द्रियबलप्राण 2. चक्षुरिन्द्रियबल प्राण 3. घ्राणेन्द्रिय बल प्राण 4. रसनेन्द्रियबल प्राण 5. स्पर्शनेन्द्रियबल प्राण 6. मनबलप्राण 7. वचनबल प्राण 8. कायबलप्राण 9. श्वासोच्छवासबलप्राण 10. आयुष्यबलप्राण। जिसके बल (आधार) से जीव कार्य में प्रवृत्ति करता है, उसे बलप्राण कहा जाता है। इन बल प्राणों को धारण करके ही जीव प्राणी संज्ञा धारण करता है। पंचेन्द्रिय जीवों में से एकेन्द्रिय जीवों के 4 प्राण-1. स्पर्शनेंद्रिय 2. कायबल 3. श्वासोच्छवास 4. आयुष्य, बेइन्द्रियजीवों के 6. प्राण-अतिरिक्त घ्राणेन्द्रिय चौरिन्द्रिय जीवों के 8 प्राण- पूर्वोक्त 7 के अतिरिक्त आठवीं चक्षरिन्द्रिय। पंचेन्द्रिय जीवों में असंज्ञी के 9 प्राण- पूर्वोक्त 8 + श्रोत्रेन्द्रियबलप्राण संज्ञी पंचेन्द्रिय के 10 प्राण-पूर्वोक्त 9 + मनोबल प्राण। इन दस प्राणों के धारक जीवों का अतिपात अर्थात् वधादि न करना ही पहला प्राणातिपात महाव्रत है। साधु स्व-पर हिंसा से विरत होता है। स्वहिंसा से तात्पर्य है कि-काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दूषित मनोवृत्तियों के द्वारा आत्मगुणों का नाश करना। तो अपने अतिरिक्त अन्य प्राणियों को दुःखी करना, नाश करना, हानि पहुँचाना पर हिंसा है। साधु को इस प्रकार त्रस एवं स्थावर जगत के समस्त प्राणियों की हिंसा से विरति लेना होता है। 1. विनयपिटक महावग्ग 1.56 2. पैंतीस बोल-छठा बोल
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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