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________________ (267) किया जाता है, उसके पश्चात् छेदोपस्थापनीय चारित्र में पंच महाव्रत से अलंकृत किया जाता है। किन्तु भगवान पार्श्व के समय मात्र सामायिक चारित्र था और भगवान् महावीर ने छेदो-पस्थापनीय चारित्र का प्रवर्तन किया। वस्तुतः चारित्र एक सामायिक ही है। जिसका तात्पर्य है-'समता की आराधना'। जब विषमतापूर्ण प्रवृत्तियाँ त्यक्त होती है, तब सामायिक चारित्र की प्राप्ति होती है। यह निर्विशेषण या निर्विभाग है। भगवान् पार्श्व ने चारित्र के विभाग नहीं किये। भगवान् महावीर के समक्ष एक विशेष प्रयोजन उपस्थित था, इसलिए उन्होंने सामायिक को छेदोपस्थापनीय का रूप दिया। 1. सामायिक-सम अर्थात् रागद्वेष रहित आत्मा के प्रतिक्षण अपूर्व अपूर्वनिर्जरा से होने वाली आत्मविशुद्धि का प्राप्त होना सामायिक है। भवाटवी के भ्रमण से पैदा होने वाले क्लेश को प्रतिक्षण नाश करने वाली, चिन्तामणि, कामधेनु एवं कल्पवृक्ष के सुखों का भी तिरस्कार करने वाली, निरूपम सुख देने वाली, ऐसी ज्ञान, दर्शन, चारित्र पर्यायों को प्राप्त कराने वाले, राग द्वेष रहित आत्मा के क्रियानुष्ठान को सामायिक कहते हैं। सर्व सावध व्यापार का त्याग करना एवं निरवद्य व्यापार का सेवन करना सामायिक है। सामायिक के दो भेद हैं 1. इत्वर कालिक सामायिक 2. यावत्कथिक सामायिक 1. इत्वरकालिक सामायिक इत्वर काल का अर्थ है अल्पकाल अर्थात् भविष्य में दूसरी बार फिर सामायिक व्रत का व्यपदेश होने से जो अल्प काल की सामायिक हो, उसे इत्वर कालिक सामायिक कहते हैं। पहले एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान् के तीर्थ में जब तक शिष्य में महाव्रत का आरोपण नहीं किया जाता, तब तक उस शिष्य के इत्वर कालिक सामायिक समझनी चाहिए। 1. विशेषावश्यकभाष्य गा. 1262 2. वही 1261 3. वही 4. विशेषा. 1263 5. वही
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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