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________________ (257) वंदनविधि अनिवार्य कही गई है। दीक्षावृद्ध श्रमणी के लिए छोटे बड़े सभी भिक्षुओं को वंदन करने का विधान है। भिक्षुणी के आठ गुरुधर्मों में (अट्ठगुरुधम्मा) सबसे पहला नियम यही है।' व्रत कल्प के सदृश यहाँ बौद्ध परम्परा में भी दो प्रकार की दीक्षा का विधान गया है-1. श्रामणेर दीक्षा 2. उपसम्पदा। श्रामणेर दीक्षा परीक्षा स्वरूप है, जिसमें दस भिक्षु-शीलों की प्रतिज्ञा की जाती है। उपसम्पदा देने के लिए पाँच अथवा दस भिक्षुओं के भिक्षु-संघ का होना अनिवार्य है। इस प्रकार यह सामायिक व छेदोपस्थापनीय के तुल्य है। इस परम्परा में भी वरिष्ठता व कनिष्ठता उपसम्पदा के अनुसार ही मानी गई है। प्रतिक्रमण कल्प की भांति यहाँ प्रावरणा की व्यवस्था है, जिसमें पन्द्रहवें दिन भिक्षु संघ एकत्रित होकर आचारित पापों का प्रायश्चित करता है। यह विधि प्रतिक्रमण कल्प के समकक्ष कही जा सकती है। ___ मासकल्प के तुल्य यहाँ भी भिक्षु को एक स्थान पर रूकना वर्जित किया गया है। चातुर्मासकाल में एक स्थान पर रूक कर धर्म की विशेष आराधना को यहाँ भी महत्त्व दिया गया है। इस प्रकार कल्पविधान में दोनों परम्पराएँ अति निकट प्रतीत होती है। वैदिक परम्परा में कल्पविधान __ जैन परम्परा के सदृश वैदिक परम्परा में आचेलक्य कल्प के समान सन्यासी के लिए या तो नग्न रहने का या तो जीर्ण-शीर्ण अल्पवस्त्र धारण करने का विधान है। औद्देशिक कल्प के सदृश तो नहीं, किन्तु भिक्षावृत्ति को मान्य किया गया है। शय्यातर व राजपिण्ड कल्प का विचार यहाँ उपलब्ध नहीं होता किन्तु कृतिकर्म कल्प व व्रत कल्प को समान ही स्थान दिया गया है। प्रतिक्रमण कल्प जैसा यहाँ विधान नहीं, किन्तु प्रायश्चित का यहाँ भी विधान है। मासकल्प के सदृश वैदिक परम्परा में भी संन्यासी को एक स्थान पर रूकना चाहिये। शेष समय गाँव में एक रात्रि और नगर में पाँच रात्रि से अधिक न रूककर भ्रमण करना चाहिए। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो कल्पविधान में जैन-बौद्ध व वैदिक परम्परा में बहुत कुछ साम्य है। जैन परम्परा में जिस प्रकार आहार के नियमों के 1. विनयपिटक-चूलवग्ग 10.12 2. बुद्धिज्म पृ.७७-७८ 3. धर्मशास्त्र का इतिहास भाग 1. पृ. 494 4. वही पृ. 491
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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