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________________ (23) अध्याय-२ परमेष्ठी पद : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि श्रमण एवं ब्राह्मण परम्परा में परमेष्ठी पद 'पंच परमेष्ठी' जैन धर्म की आधार-शिला कही जाती है। यह 'नमस्कार मंत्र' का अपर नाम है। अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-ये पंच पद परमेष्ठी रूप से ख्याति प्राप्त है। जैन धर्म के सभी सम्प्रदाय चाहे दिगम्बर हो या श्वेताम्बर सभी ने एक स्वर से इसकी महिमा गाई है। अनादि-निधन और शाश्वत इस मंत्र का गौरव अद्यापि अक्षुण्ण और यथावत् है। यहाँ शोध का विषय यह है कि यह नमस्कार महामंत्र परमेष्ठी पद पर कब स्थापित हुआ? ये पंच पद परमेष्ठी संज्ञा से कैसे अधिरूढ हुए? ___ आगमों में नमस्कार मंत्र के स्थान पर 'पंच मंगल महाश्रुत स्कंध' ऐसा उल्लेख मिलता है। श्वेताम्बर आगमों में सर्वप्रथम इस नमस्कार मंत्रका उल्लेख 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' (भगवती सूत्र), (वि. 5. 3. 4. शती), पश्चात् महानिशीथ में किया गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति में मात्र मंगल के रूप में उल्लेख है। जबकि महानिशीथ सूत्र (वि.सं.८-९) में पंचमंगल का विस्तृत विवेचन किया गया है। भगवती सूत्र के वृत्तिकार श्रीमद् अभयदेवसूरि ने इस पर विस्तृत टीका की है। इस टीका में इसे पंच परमेष्ठी पद से स्थान-स्थान पर सम्मानित किया है। महानिशीथ सूत्र जो कि आगमान्तर्गत ख्याति प्राप्त है, वहाँ इसे 'पंच मंगल महाश्रुत स्कंध' से सम्बोधित किया है। उसमें भी मात्र एक ही स्थल है जहाँ परमेष्ठी शब्द प्रयुक्त है। वहाँ इन पाँचों पदों को परमेष्ठी रूप प्राप्त नहीं होता, मात्र अर्हन्त पद के साथ ही परमेष्ठी पद प्रयुक्त किया है। इससे तात्पर्य यह निकाला जा सकता है कि यह परमेष्ठी शब्द/पद तब तक रूढ़ या प्रचलित न हुआ हो? अथवा 'महानिशीथकार' ने 'पंचमंगल महाश्रुतस्कंध' शब्द अधिक उपयुक्त समझा हो क्योंकि महानिशीथ सूत्र में उपधान विधि के अन्तर्गत इसकी चर्चा की है। अथवा यह सर्व मंगलों में प्रमुख तथा प्रथम मंगल स्वरूप होने से, हो सकता है कि इसे पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध कहा गया हो। अथवा पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध शब्द परमेष्ठी शब्द से अधिक माहात्म्य लिए हुए हो? 1. (महानिशीथ सूत्र अ. 3 सू. 13.) 2. (वही अ. 3 सू. 14.)
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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