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________________ (241) 17. कटुवचन, अपशब्द बोले। 18. स्व-पर को, असमाधि उत्पन्न करने वाले वचन बोले। 19. सुबह से शाम तक खा-खा करे (व्रतादि न करे)। 20. दूषित आहार-पानी ग्रहण करें। (ख) 21 सबल (बड़े) दोष' - 21 दोष जो कि बलवान है, उनका सेवन न करके त्याग करने का निर्देश किया है। दोष तो सदैव त्याज्य ही होते हैं, किन्तु सबल दोष होने की वजह से, दोष विशेष रूपसे त्यागने योग्य हैं। वे दोष निम्न हैं 1. हस्त कर्म करना। 2. मैथुन सेवन करना। 3. रात्रि में चारों आहार का सेवन करना। 4. राजपिंड (अति पौष्टिक आहार कि जो राजवंशजों के लिए बनाया गया हो। जिसमें शराब, मांस आदि सम्मिलित हों) आहार ग्रहण करना। 5. आधाकर्मी आहार (साधु के निमित्त निर्मित किया गया आहार) सेवन करना। 6. कीयगडं-खरीदा हुआ लेना। पामीचं-उधार लिया हुआ, अछेजं-निर्बल के हाथ से छीन कर लेना, अणिसिटुं-स्वामी की आज्ञा के बिना लेना, अभिहडं-सन्मुख लाकर देवे इन पाँच दोषों से युक्त आहार लेना। 9. एक महिने में 3 बड़ी नदी पार करना। 10. एक महिने में 3 बार कपट करे तो। 11. शय्यातर के घर का आहार ले तो। (मकान में उतरने की आज्ञा देने वाला) 12-14. आकुटी (इरादापूर्वक) हिंसा करे, असत्य बोले, चोरी करे तो। . 15. सचित पृथ्वी पर बैठे तो। 16. सचित्त धूल की रज से युक्त पाट, पट्टे ग्रहण करे तो। 1. दशाश्रुतस्कंध अध्य. 1.2
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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