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________________ (20) अन्तरात्मा के भेद-आत्मगुण के विकास के अनुसार अन्तरात्मा के भी तीन भेद किये गये हैं (क) जघन्य अन्तरात्मा :- अविरत सम्यग्दृष्टि चतुर्थ गुणस्थावर्ती आत्मा जघन्य अन्तरात्मा है। (ख) मध्यम अन्तरात्मा :- देशविरति पंचम गुणस्थान से उपशान्त मोह ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती आत्मा मध्यम अन्तरात्मा है।' (ग) उत्कृष्ट अन्तरात्मा :- क्षीण कषाय नामक बारहवें गुणस्थानवर्ती आत्मा उत्कृष्ट अन्तरात्मा है। निजानुभूति का पान करने वाले अन्तरात्मा में निम्नलिखित गुण होते हैं१. धर्म ध्यान का ध्याता 2. आत्मोन्मुखी प्रवृत्ति 3. शरीर और आत्मा के भिन्नत्व की प्रतीति 4. आत्म निष्ठा का पूर्ण सद्भाव 5. जिनवचनों की विज्ञता परमात्मा शुद्ध आत्मा ही परमात्मा है / कर्मशत्रु से रहित, रागद्वेष के विजेता, सर्वज्ञ और सर्वदशी आत्मा ही परमात्मा है। अरिहन्त एवं सिद्ध ये दोनों परमात्मा हैं। जीवन्मुक्त अरिहन्त को तथा विदेहमुक्त सिद्ध को कहा जाता है। इसी प्रकार कार्य परमात्मा और कारण परमात्मा ये दो भेद भी परमात्मा के प्राप्त होते हैं। अरिहन्त या केवली कारण परमात्मा है। घाती चतुष्क कर्मों के क्षय के फल स्वरूप कैवल्य का प्राकट्य जिनमें हुआ है, वे 'सयोगी केवली' नामक तेरहवें 1. (क) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 197, (ख) नियमसार तात्पर्यटीका भा. 149 2. (क) का. अ. 196, (ख) द्रव्य संग्रह गा. 141, अष्ट., 11 3. वही. 4. (क) मोक्षपाहुड 5, (ख) समाधितंत्र 5, (ग) परमात्मप्रकाश 30-42 5. (का. अ. गा. 192) 6. नि. सा., तात्पर्य वृत्ति 6, नयचक्र गा. 340.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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