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________________ (200) हैं, वे उपाध्याय हैं। आचार्य शीलांक ने आचारंगवृत्ति' में उपाध्याय को अध्यापक कहा है। इसी का कथन भगवती आराधना की विजयोदयावृत्ति' में किया है कि ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना में स्वयं निपुण होकर दूसरों को आगमों का अध्ययन कराने वाले उपाध्याय है। जो कि श्रुतसागर के अवगाहन में सदा उपयोगपूर्वक ध्यान करते हैं। स्पष्ट है कि उपाध्याय सूत्रों के पाठों का उच्चारण बहुत ही शुद्धतापूर्वक, स्पष्टता के साथ करते हैं। स्पष्ट होता है कि आचार्य की भांति उपाध्याय का भी जैन परम्परा में अनूठा स्थान होता है। यद्यपि उनकी कक्षा आचार्य के तुल्य होती है। आचार्य की अनुपस्थिति में संघ का दायित्व भी वे वहन करते हैं / तथापि उनका कार्य मुख्यतः सूत्र सिद्धान्तों का पाठ देना है। वे ज्ञान दान में अग्रणी है। अतः उनको पाठक कहा गया है। परंपरा के प्रवहण में उनके सदृश अन्य कोई नहीं है। संघीय व्यवस्था की दृष्टि से उपाध्याय पद आचार्य के पश्चात्वर्ती है। परन्तु जो गौरव आचार्य को दिया जाता है, उसी गौरव को उपाध्याय भी प्राप्त करते हैं। जैसे आचार्य का उपाश्रय में प्रवेश करने पर चरण परिमार्जन का उल्लेख है वैसे ही उपाध्याय का भी है। इस प्रकार ज्ञान-विज्ञान का विस्तार करने वाले उपाध्याय का माहात्म्य अत्यधिक है। वे ज्ञान के अधिदेवता है। उपाध्याय संघरूपी नन्दवन के कुशलमाली है, जो ज्ञानरूपी वृक्ष को शस्य श्यामल बनाए रखते हैं। ज्ञान वृक्ष की शुद्धता-निर्दोषता और विकास का पूर्ण लक्ष्य रखने में तथा आगम पाठ को सुरक्षित रखने में उपाध्याय प्रवर का अपूर्व योगदान है। इस अर्थ में वे सूत्र सिद्धान्तों के पाठक हैं। जैन परम्परा में इन सूत्रों एवं सिद्धान्तों को आगम कहा जाता है। जैन साहित्य में आगम का अर्थ क्या है? आगम किसे कहा जाय? तथा इनकी संख्या कितनी है? संक्षेप में इसके स्वरूप का कथन किया जाएगा। 1. उपाध्याय अध्यापक:- आचा. शीलांक वृत्ति सूत्र 279 2. रत्नत्रयेषुद्यता जिनागमार्थ सम्यगुपदिशंति ये ते उपाध्यायः / भग. आरा. वि. टीका 46 3. वही
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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