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________________ (179) (2) विनय-ज्ञान प्राप्त करने के लिए विनम्रतापूर्वक सद्व्यवहार करना। (3) बहुमान-ज्ञान के प्रति अत्यन्त अनुराग होना एवं अन्तर्मन से उसका आदर, सन्मान करना। (4) उपधान-शास्त्र की वाचना (अध्ययन) विविध तप का अनुष्ठान युक्त लेना। (5) अनिव-अध्येता गुरु का उपकार मानकर उनका नाम न छिपाना। (6) व्यञ्जन-सूत्र का वांचन करना। (7) अर्थ-सूत्र का अध्ययन अर्थ को समझते हुए करना। (8) सूत्रार्थ-सूत्र और अर्थ का साथ-साथ बोध करना। इस प्रकार इन आठ भेदों युक्त ज्ञान का आचरण करना, पालन करना ज्ञानाचार है। ___ 2. दर्शनाचार-पांचाचार में दूसरा भेद है दर्शनाचार / जिसका अर्थ है-सम्यक्त्व विषयक आचरण / सम्यक्त्व का अर्थ है सत्य-तत्त्व के प्रति दृढ़ निष्ठा एवं श्रद्धा। निशीथभाष्य में इसके आठ भेद किये हैं। जो निम्न हैं___(1) निःशंकित-इसका अर्थ शंका एवं भय दोनों मिलते हैं। उत्तराध्ययन बृहद्वृति में शान्त्याचार्य ने, श्रावक धर्म प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने स्थानाङ्गवृत्ति में आचार्य अभयदेव ने , योगशास्त्र में आचार्य हेमचन्द्र ने', प्रवचनसारोद्धार में आचार्य नेमिचंद्रने, मूलाराधना टीका में आचार्य शिवकोटिने शंका का अर्थ सन्देह किया है। तो आचार्य कुन्दन्दने समयसार में शंका का अर्थ भय किया है। तत्त्वार्थवृत्ति में आचार्य श्रुतसागर ने इसका अर्थ भय और शंका दोनों अर्थ किये हैं। इस प्रकार निःशंकित का अर्थ है जिन भाषित तत्त्व के प्रति असंदिग्ध होना और सात प्रकार के भयों से भयभीत न होकर अभय होना ही सम्यग्दर्शन का आचार है। निशीथचूर्णिकार इसके दो प्रकार करते हैं। 1. देश (अंशतः) शंका 2. सर्वशंका देशशंका यथा जीव समान है तो भव्य-अभव्य भेद कैसे हो सकते 1. निशीथ. भा. गा. 23 4. स्था. वृ. पृ. 176 7. मूलराधना 1.44 10. नि. भा. गा. 24 2. उत्तरा. वृत्ति पत्र 567. 5. योगशास्त्र 2.17 8. समय गा. 228 3. श्रा. ध. प्र. वृ. पत्र. 20 6. प्रवचन सारो. पृ. 69 9. तत्त्वार्थ वृत्ति 7.23
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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