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________________ (174) वह समूह है-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप। इसे ही तीर्थ, प्रवचन भी कहा गया है। ___ आचार्य परमेष्ठी इन्हीं साधु-साध्वी रूप चतुर्विध संघ का कुशलता से नेतृत्व करते हैं। संघ के प्रकार ___ यह संघ चार प्रकार का है। श्रमण, श्रमणी श्रावक और श्राविका। इसी से यह चतुर्विघ संघ से आख्यात हुआ है। यद्यपि संघ शब्द अन्य अर्थों में भी प्रयुक्त होता है, किन्तु यहाँ यह चतुर्विध संघ की अभिप्रेत है। जिसकी गौरव गाथा का सर्वत्र गुणगान हुआ है। (ब) 1. धर्म के साथ जुड़ा संघ शब्द यद्यपि संघ शब्द का प्रयोग समूह अर्थ में होता है, तथापि जैन परम्परा में यह संघ शब्द धर्म के साथ संयुक्त हो गया है। चतुर्विध संघ रूप होने से यह धर्म के पर्याय या एकार्थक हो गया है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख हुआ है कि प्रवचन, तीर्थ भी इसी के एकार्थक है। यहाँ तक कि तीर्थङ्कर के अनन्तर संघ का ही स्थान सर्वोपरि माना गया है। 2. सामान्यतया संघ शब्द का प्रयोग सामान्यतयासमूह-समुदाय अर्थक ही संघ होता है। जैन परम्परा में यह जैन सिद्धान्त, जिन शासन रूप है किन्तु अन्यत्र संस्थारूप में, मण्डली, पदचारी एवं वाहन संयुक्त, यात्रिकों का समूह, पंथ, मण्डल, सहकारी समाज, संगठित एवं व्यवस्थित समुदाय अर्थ में भी संघ शब्द का प्रयोग किया गया है। 3. चतुर्विध संघ श्रमण, श्रमणी, श्रावक एंव श्राविका इस प्रकार संघ को चतुर्विध मान्य किया है। इनमें से एक का भी अभाव हो तो वह परिपूर्ण नहीं कहा जा सकता। इन चारों से संयुक्त संघ ही चतुर्विध संघ है। (स) संघ संचालन आचार्य परमेष्ठी का मुख्य कार्य है- संघ का संचालन करना। संघ की 1. ठा. 3.4
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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